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नोटबंदी का 29वा दिन- बैंक मे नगदी खत्म,एटीएम बंद, मृतक 105

bank1नई दिल्ली,नोटबंदी को 29 दिन  हो गए है लेकिन हालात अभी भी बद से बदतर है। शहरों के लगभग एटीएम  बंद है। लोगों को दो हजार के एक नोट के लिए 8 घंटे तक लाइन में खड़े रहे कर इंतजार करना पड़ता है। केंद्र सरकार ने 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बंद कर देश के आम और खास व्यक्ति को एक धरातल पर लाकर खड़ा दिया। नोटबंदी के तीन हफ्ते गुजर चुके हैं, मगर उसके बाद से कोई खास सकारात्मक प्रभाव लोगों के सामने नहीं आया है।

नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम पर उमड़ी भीड़ ने नोटबंदी की तैयारी पर प्रश्न चिन्ह उठाया। इस फैसले के लिए समूची तैयारियों की जरूरत थी, जो नदराद रहीं। वहीं इस बीच जिन लोगों के पास 500 और 1000 के अधिक संख्या में जायज नोट भी हैं, वह भी बैंकों की भीड़ के डर से अपनी मेहनत की कमाई को जाया होते देख रहे हैं।

नोटबंदी के इस दौर में कई लोगों ने तो अपनी जानें भी गवाई हैं। आकंड़ो के अनुसार, नोटबंदी के बाद से 105 से अधिक लोगों की मौत हुई। इसके अलावा नगदी की कमी से वह क्षेत्र भी प्रभावित हुए, जिनसे सबसे अधिक लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ था। नोटबंद के साथ ही नोटों को बदलने व निकालने की सीमा, बैंकों में उमड़ी भीड़ और एटीएम की अधूरी व्यवस्थाओं ने लोगों को खीजने पर मजबूर कर दिया। वहीं, बैंकों से जैसे-तैसे पैसा निकाल कर लाए लोग उस समय खुद को ठगा सा महसूस करने लगे जब बाजार में दुकानदारों ने 2,000 हजार का छुट्टा देने से मना कर दिया।

सरकार द्वारा बड़े नोटों को हटाकर उससे भी बड़ा 2,000 का नोट बाजार में उतारना किसी को हजम नहीं हुआ। यहां तक आंध्र प्रदेश में एक मजदूर ने 2000 रुपये के नोट का छुट्टा न मिल पाने के कारण आत्महत्या की कोशिश तक कर डाली। नोटबंदी से देश के तमाम राज्यों जैसे यूपी, उत्तराखंड, बिहार झारखंड में रबी की फसलों की बुवाई धीमी हो गई। गेंहू, तरबूज, सरसों, पालक समेत बीजों की बिक्री छोटे नोट की कमी से वजह से 70 प्रतिशत प्रभावित हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले ने देश के हर वर्ग और क्षेत्र को चौंकाया। तीन हफ्ते के बाद अगर इसे फैसले के नकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो इसकी फेहरिस्त काफी लंबी है। नोटबंदी की घोषणा के बाद देश की 86 फीसदी की नगदी के रातों-रात यूं पानी-पानी हो जाने से पूंजीपति से लेकर आम इंसान भी प्रभावित हुआ। नोटबंदी को तीन हफ्ते हो चुके हैं, लेकिन इससे होने वाले फायदों की तस्वीर अभी भी धुंधली है, जिसका सरकार पहले दिन से दावा कर रही है। हालांकि हम खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह की पहल से लोगों के रहन-सहन, खर्चो में बदलाव आएगा और वह नगदी पर कम आश्रित होंगे।

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