लखनऊ, दुनिया भर में मशहूर है लखनऊ की चिकनकारी और जरदोजी लेकिन नोटबंदी की गाज इस पर ऐसी गिरी है कि कारीगर काम को तरस गए हैं और दुकानदार ग्राहकों को, और आलम यह है कि खचाखच भरे रहने वाले बाजारों में सन्नाटा पसरा है। लखनऊ में अमीनाबाद और चौक जहां चिकनकारी के कपड़ों के पारंपरिक बाजार है, वहीं हजरतगंज में इसके कई लुभावने शोरूम है। वहीं सोने चांदी के धागों से कपड़े पर जरदोजी का काम पुराने लखनऊ में अकबरी गेट से गोल दरवाजे के बीच मुख्य रूप से होता है जहां पुराने कारीगर बसे हुए हैं।
चौक पर छह दशक से भी पुरानी भगवत दास एंड संस दुकान के मालिक बीके रस्तोगी ने कहा, हमारे 70 प्रतिशत कारीगर परेशान हैं और सर्कुलेशन में काफी दिक्कतें आ रही हैं। पिछले डेढ़ महीने में बिक्री 40 प्रतिशत गिर गई है। सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी पर काम करने वाले कारीगरों पर पड़ा है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में चिकनकारी के कपड़े यहां से जाते हैं लेकिन वहां से भी मांग में गिरावट आई है। रस्तोगी ने कहा, लखनऊ में पेटीएम इतना लोकप्रिय नहीं है और सभी लोग कार्ड से भी भुगतान नहीं करते। इसके अलावा बैंक से पैसा निकालने की जो सीमा तय कर दी गई है, उससे व्यापारियों को काफी नुकसान हो रहा है।
वहीं शाही शिफाखाना चौक पर 60 साल से जरदोजी का पुश्तैनी कारोबार चला रहे जफर अली वैसे ही धंधे में मुनाफा नहीं होने से परेशान थे और अब रही सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी। अली ने कहा, हमारे यहां 12.13 कारीगर काम करते हैं और सभी को दिहाड़ी देनी होती है। इसके अलावा कच्चा माल नकदी पर ही मिलता है। नोटबंदी से दोनों में दिक्कतें आ रही हैं। मांग आधी से भी कम रह गई है। लखनऊ के बड़े शो रूम से आर्डर ही नहीं मिल रहे। लगन के मौसम में भी यह हाल है तो आगे की छोड़ ही दीजिये। उन्होंने कहा, वैसे भी जरदोजी के कारीगर अब यहां ज्यादा बचे नहीं हैं और मेरे साथ हमारा पुश्तैनी काम भी खत्म हो जायेगा क्योंकि नयी पीढी में कोई करना नहीं चाहता।
पिछले डेढ़ महीने से तो लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है। यह सब्र का काम है और एक साड़ी बनाने में कम से कम 15 दिन तक लग जाते हैं। काम की नजाकत के पैसे होते हैं लेकिन अब पैसा ग्राहक के पास है ही नहीं। इंदिरानगर के मशहूर भूतनाथ मार्किट में कैलाश चिकंस शोरूम पर बिक्री 20 से 30 प्रतिशत तक घटी है हालांकि इसके मालिकों को उम्मीद है कि जल्दी ही व्यवसाय ढर्रे पर आ जायेगा। उन्होंने कहा, इसमें कोई शक नहीं कि व्यवसाय पर असर पड़ा है लेकिन नोटबंदी का फैसला देश के हित में लिया गया है तो हमें थोड़ी बहुत परेशानी से कोई गुरेज नहीं है। उम्मीद है कि कुछ महीने में सब कुछ ठीक हो जायेगा।
लखनऊ की एक और पहचान है अमीनाबाद के मशहूर टुंडे कबाबी जो स्थानीय, देशी और विदेशी मेहमानों से भरा रहता है। दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक यहां दस्तरखान सजा रहता है लेकिन इसके मालिक मोहम्मद उस्मान की मानें तो पिछले डेढ़ महीने में 40 प्रतिशत ग्राहक कम हो गए हैं। उन्होंने कहा, हम पेटीएम से भुगतान नहीं लेते और दुकान नीचे होने से नेटवर्क नहीं आता जिससे कार्ड भुगतान में दिक्कत आती है। व्यापार नकदी पर होता है और सबसे बड़ी दिक्कत है कि ग्राहकों को देने के लिये छुट्टे नहीं होते। यहां पैर रखने की जगह नहीं होती थी लेकिन नोटबंदी के बाद से यहां ग्राहकों की तादाद काफी गिरी है।