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न्यायाधीश यशवंत वर्मा के नकदी प्रकरण पर खुलासा होना चाहिए: उप राष्ट्रपति जगदी धनखड़

नयी दिल्ली, उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से मिली नकदी प्रकरण का खुलासा होना चाहिए क्याेंकि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ किसी न्यायिक अधिकारी की जांच, अन्वेषण और छानबीन के विरुद्ध कोई अभेद्य कवच नहीं है।

उप राष्ट्रपति जगदी धनखड़ ने यहां उपराष्ट्रपति निवास में राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि वर्मा प्रकरण को एक महीना बीत चुका है, लेकिन कुछ भी सार्वजनिक नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अभी तक प्राथमिकी भी दर्ज नहीं की गयी है जबकि भारतीय संविधान ने केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान की है।

उन्होंने कहा कि इस संबंध में अब खुलासा हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं हाल ही की घटनाओं का उल्लेख करता हूं। वे हमारे दिमाग पर छायी हुई हैं। 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर एक घटना हुई। सात दिनों तक, किसी को इसके बारे में पता नहीं था। हमें अपने आप से सवाल पूछने होंगे। इस संबंध में देरी के कारण जानकारी की आवश्यकता है। यह देरी क्षम्य नहीं है।”

उप राष्ट्रपति ने कहा कि इस प्रकरण से पूरा देश स्तब्ध है। वे इस विस्फोटक चौंकाने वाले खुलासे पर चिंतित और परेशान है। हालांकि बाद में उच्चतम न्यायालय से दोष का संकेत दिया। इसकी जांच की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “अब राष्ट्र सांस थाम कर प्रतीक्षा कर रहा है। राष्ट्र बेचैन है क्योंकि हमारी संस्थाओं में से एक को, जिसे लोगों ने हमेशा सर्वोच्च सम्मान और श्रद्धा के साथ देखा है, कटघरे में डाल दिया गया है। ”

उप राष्ट्रपति जगदी धनखड़ ने कानून के शासन के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में इसकी आपराधिक न्याय प्रणाली की शुद्धता इसकी दिशा को परिभाषित करती है। इस मामले की जांच आवश्यक है। इस समय कानून के तहत कोई जांच प्रगति पर नहीं है। क्योंकि एक आपराधिक जांच की शुरुआत एफआईआर, प्रथम सूचना रिपोर्ट से होनी चाहिए। यह नहीं हुई है। उन्हाेंने कहा कि यह देश का कानून है कि हर संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए और ऐसा करने में विफलता अपने आप में एक अपराध है। देश में किसी के भी खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है। बस कानून के शासन को सक्रिय करना है। कोई अनुमति आवश्यक नहीं है। उन्हाेंने कहा, “ लेकिन अगर न्यायाधीश की श्रेणी में एफआईआर सीधे दर्ज नहीं की जा सकती, तो इसे न्यायपालिका से अनुमोदित किया जाना चाहिए लेकिन यह संविधान में नहीं दिया गया है। भारत के संविधान ने अभियोजन से प्रतिरक्षा केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को प्रदान की है। हर व्यक्ति सोच रहा है कि अगर यह घटना उसके घर पर हुई होती, तो कार्रवाई की गति एक इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट की होती। अब यहां तो यह बैलगाड़ी भी नहीं है।”

उप राष्ट्रपति ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की एक समिति इस मामले की जांच कर रही है, लेकिन जांच कार्यपालिका का क्षेत्र है। न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है। यह समिति भारत के संविधान के तहत नहीं है। तीन न्यायाधीशों की यह समिति संसद के किसी कानून के तहत नहीं है। उन्होंने कहा कि यह समिति अधिक से अधिक एक सिफारिश कर सकती है। न्यायाधीशों पर कार्रवाई केवल संसद द्वारा की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि जांच के लिए गति, त्वरित कार्रवाई और आपत्तिजनक सामग्री के संरक्षण की आवश्यकता होती है, लेकिन इस प्रक्रिया से कानून के शासन को कमजोर हो रहा है। उन्हाेंने कहा, “मैं सभी संबंधित लोगों से जोर देकर आग्रह करूंगा कि वे इसकी जांच एक परीक्षण के रूप में करें। इस समिति के पास क्या वैधता और क्षेत्राधिकार प्राधिकार है। क्या हमारे पास एक श्रेणी के लिए अलग कानून हो सकता है और इस श्रेणी का कानून, संविधान से हटकर, संसद से हटकर होगा। समिति की रिपोर्ट स्वाभाविक रूप से कानून के अनुरुप नहीं होगी।”

शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि जब कार्यपालिका, सरकार, लोगों द्वारा चुनी जाती है तो वह संसद और लोगों के प्रति जवाबदेह होती है, लेकिन अगर यह शासन न्यायपालिका का है तो जवाबदेह कोई नहीं है।

पारदर्शिता के महत्व पर उप राष्ट्रपति जगदी धनखड़ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में सात सदस्यीय लोकपाल पीठ ने फैसला सुनाया। इसने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र अपने पास रखा है। उप राष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका की ‘स्वतंत्रता’ जांच के खिलाफ कोई ढाल नहीं है। यह स्वतंत्रता जांच, अन्वेषण, छानबीन के खिलाफ कोई अभेद्य कवच नहीं है। उन्होंने कहा, “किसी संस्था या व्यक्ति को पतित करने का सबसे निश्चित तरीका है कि पूर्ण गारंटी देना कि कोई जांच नहीं होगी, कोई छानबीन नहीं होगी, कोई जांच नहीं होगी।”