नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) विफल रहा।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक बार फिर सख्त टिप्पणियां कीं। पीठ ने पंजाब और हरियाणा की सरकारों को एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करके सीएक्यूएम द्वारा जारी निर्देशों के कार्यान्वयन का खुलासा करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने कहा, “हर साल सर्दियों में पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। यह राष्ट्रीय राजधानी में खराब वायु गुणवत्ता के प्रमुख कारणों में से एक है, लेकिन वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।”
पीठ वायु प्रदूषण से संबंधित मामले को उठाते हुए कहा, “जाहिर है, आयोग ने अपने आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।”
पीठ ने कहा कि सीएक्यूएम ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में पराली जलाने की घटनाओं के खिलाफ एक भी मुकदमा तक नहीं किया।
पीठ ने कहा कि आयोग ने इस मुद्दे पर 29 अगस्त को ही बैठक की थी। अदालत ने यह भी कहा कि बैठक में 11 में से केवल पांच सदस्य ही मौजूद थे, जहां उसके निर्देशों के क्रियान्वयन पर चर्चा तक नहीं हुई।
पीठ ने कहा, “हर कोई जानता है कि चर्चा के अलावा कुछ नहीं हो रहा है। यही इसकी कठोर सच्चाई है।”शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके वायु प्रदूषण के क्षेत्र के कुछ विशेषज्ञों को अतिरिक्त सदस्य के रूप में नियुक्त कर सकती है।
पीठ ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को पराली जलाने में शामिल पाए गए किसानों से नाममात्र का मुआवजा लेने के लिए भी फटकार लगाई।
गौरतलब है कि अदालत ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए उठाए गए कदमों पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए पिछले सप्ताह सीएक्यूएम से
कहा था।
शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को सख्त टिप्पणियां की थीं। उसने दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाने और केवल “मूक दर्शक” के रूप में काम करने के लिए आयोग की आलोचना की थी।