नयी दिल्ली, देश में मूल्यपरक पत्रकारिता के लिए वयोवृद्ध पत्रकार कुलदीप नय्यर के नाम पर एक लाख रुपये का पुरस्कार शुरू किया गया है और पहला पुरस्कार चर्चित टीवी पत्रकार रवीश कुमार को दिया जाएगा। गांधी शांति प्रतिष्ठान हिन्दी एवं भारतीय भाषाअों में मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता करने वाले किसी श्रेष्ठ पत्रकार को हर साल यह पुरस्कार प्रदान करने का फैसला किया है। इसमें एक लाख रुपये की राशि प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिह्न शामिल है।
एन डी टी वी के एंकर रवीश कुमार को यह सम्मान 19 मार्च को दिया जायेगा। इस पुरस्कार की घोषणा आज यहां प्रेस क्लब में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत और सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री आशीष नंदी ने की। इस अवसर पर सर्वश्री कुलदीप नैय्यरएजनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी और प्रसिद्ध समाजवादी कार्यकर्त्ता विजय प्रताप भी मौजूद थे।
प्रशांत ने कहा कि देश में पत्रकारों को दिए जाने वाले पुरस्कारों की भीड़ में एक और पुरस्कार की घोषणा इसलिए की जा रही है कि आज मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता की बेहद जरूरत है। यह इस अर्थ में अलग पुरस्कार है कि पत्रकार ही इसका चयन करेंगे। इस पुरस्कार के लिए एक संचालन समिति गठित की गयी है और गांधी शांति प्रतिष्ठान इसे संचालित करेगा। संचालन समिति में आशीष नंदी,ओम थानवी,नीरजा चौधरी, रिजवान कैसर, विजय प्रताप, प्रियदर्शन, जयशंकर गुप्त, अनिल सिन्हा, प्रमोद रंजन और प्रतिष्ठान के सचिव अशोक कुमार शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता मूल्यों को बनाती है तो मूल्यों को बिगाड़ती भी है, इसलिए मूल्यपरक पत्रकारिता के लिए
यह पुरस्कार शुरू किया जा रहा है। आज स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर चोट की जा रही है। नंदी ने रवीश कुमार के नाम की घोषणा करते हुए कहा कि उनकी आज देश भर में पहचान है और वह सबके पसंदीदा पत्रकार हैं इसलिए पहले साल उन्हें या पुरस्कार दिया जा रहा है।
नैय्यर ने कहा कि देश में लोग अंग्रेजी के पत्रकारों को जानते हैं, हिन्दी के पत्रकारों को नहीं जानते। इसलिए सारे पुरस्कार अंग्रेजी पत्रकारों को ही मिलते हैं। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के लिए यह पुरस्कार शुरू किया जा रहा है। हिन्दी पत्रकार अंग्रेजी से अधिक लायक पत्रकार हैं । उन्होंने कहा कि वह चूंकि अंग्रेज़ी में लिखते हैं, इसलिए देश भर में उन्हें लोग बुलाते हैं । अंगेजी के अख़बारों को अधिक विज्ञापन मिलते हैं हिन्दी से इसलिए उनकी कमाई भी अधिक है लेकिन हिन्दी को बढ़ावा देना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि किसी दिवंगत पत्रकार के नाम पर यह पुरस्कार क्यों नहीं, प्रशांत ने कहा कि इस पुरस्कार की कल्पना भी नैय्यर ने की थी और वह देश के बड़े और सम्मानित पत्रकार हैं, इसलिए उनके नाम पर यह सम्मान दिया जा रहा है।