औरैया, उत्तर प्रदेश में औरैया जिले के गांव कुदरकोट में भगवान भयानक नाथ के मंदिर में स्थापित शिवलिंग की पौराणिक महत्ता है। मान्यता है कि भगवान भोलनाथ यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। यहां पर हर वर्ष सावन माह में जिले के बाहर से हजारों लोग श्रद्धा के साथ आराधना करते आते रहे हैं। यहां पर सावन भर हजारों भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
औरैया जिला जहां क्रांतिकारियों की भूमि के नाम से इतिहास के पन्नों में दर्ज है वहीं पौराणिक धरोहरों के साथ बिधूना तहसील क्षेत्र का गांव कुदरकोट (पूर्व में कुंडिनपुर) का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। मान्यता है कि यहां भगवान कृष्ण की ससुराल है, यहीं से भगवान कृष्ण द्वारा रूकमिणी के हरण करने के प्रमाण मिलते है। जानकार बताते है कि कुदरकोट गांव कभी कुंडिनपुर बाद में कुंदनपुर के नाम से जाना जाता था और द्वापर कालीन राजा भीष्मक की राजधानी हुआ करती थी। रूकमणी के पिता महाराज भीष्मक द्वारा आज से लगभग पांच हजार साल पूर्व पुरहा नदी के तट के पास एक शिवलिंग की स्थापना कराई गयी थी। जो कालांतर में भगवान भयानक नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पांडव (युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव) अपनी मां कुन्ती के साथ यहां पर कुछ समय के लिए रूके थे। जिस दौरान उनके द्वारा इस शिवलिंग पर पूजा अर्चना की गयी। इसके बाद पांडव यहां से अज्ञात स्थान के लिए रवाना हो गये।
मंदिर के पुजारी राम कुमार चौरसिया ने बताया कि यह पौराणिक के साथ-साथ सिद्ध शिवलिंग हैं। यहां पर सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। कहा कि सावन महीने में भक्तों को सच्चे मन से भगवान भोले शंकर को दूध, दही, घी, मक्खन, गंगाजल, बिल्व पत्र, आक, धतूरा आदि चढ़ाकर आराधना करनी चाहिए, जिससे उनकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
पंडित देवेश कुमार के अनुसार सावन मेें भगवान शिव के अभिषेक का विशेष महत्व है। पार्थिव शिवलिंग के पूजन व जलाभिषेक से भगवान भोलेनाथ का आर्शीवाद मिलता है। बताया कि समुद्र मंथन में निकले विष का पान करने के बाद जलन को शांत करने लिए भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया गया था।
मंदिर के पुजारी राम कुमार चौरसिया ने बताया कि यह मंदिर जर्जर हो गया था। लगभग पांच दशक पहले उनके पिता सुभाष चन्द्र चौरसिया ने लोगों की मदद से इसका पुर्नरोद्धार कराया था। सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा अर्चना के लिए गैर जनपदों तक के हजारों लोग यहां आते हैं।
प्राचीन मंदिर होने के बाद भी मंदिर पर जाने के लिए ऊबड़-खाबड़ कच्चा रास्ता है। तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष ने मंदिर के लिए जाने वाले मार्ग को पक्का कराने की सार्वजनिक तौर पर घोषणा भी की थी, किन्तु आज तक मंदिर को जाने वाला मार्ग कच्चा का कच्चा ही है।