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पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर में देश विदेश से उमडेंगे श्रद्धालु, तैयारियां पूरी

बलरामपुर, देश की 51 शक्तिपीठों में से एक विश्व विख्यात आदि शक्ति मां पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर मे शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन से ही देश विदेश से आने वाले दर्शनार्थियों की सेवा व सुरक्षा को लेकर मंदिर प्रबंधन संग सभी प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली गयीं हैं।

मंदिर के महंत मिथलेश नाथ योगी नें शुक्रवार को यूनीवार्ता को बताया कि आगामी15 अक्टूबर को आरंभ हो रहे चैत्र नवरात्रि में भोर से ही मां पाटेश्वरी के दिव्य दर्शन प्रारम्भ होते ही श्रद्धालु मां की पूजा अर्चना व दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं मांगेंगे । उत्तर प्रदेश मे बलरामपुर जिले के भारत नेपाल सीमा से सटे तुलसीपुर तहसील क्षेत्र के पाटन गांव मे सिरिया नदी के तट पर स्थित देवी पाटन मंदिर मे मुख्य रुप से मां पाटेश्वरी की पुष्प ,नारियल ,चुनरी ,लौंग ,इलायची कपूर व अन्य पूजन सामग्रियां चढाकर पूजा अर्चना की जाती है ।

दूर दराज से आये अधिकांश देवीभक्त यहाँ स्थित सूर्य कुंड मे पवित्र स्नान कर पेट पलनिया चलकर मां के दर्शन करते है। मंदिर के महन्त योगी मिथलेश नाथ ने बताया कि ,पिता दक्ष प्रजापति के यहां आयोजित बड़े अनुष्ठान मे अपने पति इष्टदेव देवाधिदेव महादेव को न्योता और स्थान न दिये जाने से क्षुब्ध माँ जगदम्बा ने स्वयं को अग्नि को भेंट कर सती कर लिया था। माता के सती होने से आक्रोशित महादेव अत्यंत दुखी हुये और माता सती के शव को कंधे पर रखकर तांडव करने लगे । शिव तांडव से धरती थर्राने लगी ,इससे संसार मे व्यवधान उत्पन्न होने लगा । संसार को विनाश से बचाने के लिये भगवान विष्णु ने सती के अंगो को सुदर्शन चक्र से खण्डित कर विभिन्न इक्यावन स्थानों पर गिरा दिया, जिन जिन स्थानों पर माता के अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ माने गये ।

मान्यता है कि यहां पाटन गांव मे मां जगदम्बा का बांया स्कंद पाटम्बर समेत गिरा , तभी से इसी शक्तिपीठ को मां पाटेश्वरी देवी पाटन मंदिर के नाम से जाना जाता है । यहां एक गर्भगृह भी स्थित है जहां माता सीता का पाताल गमन हुआ था । नव दुर्गाओ मां शैलपुत्री ,कुष्माडा ,स्कंदमाता,कालरात्रि ,महागौरी ,चंद्रघंटा ,सिद्धदात्री,ब्रह्म्चारिणीऔर कात्यायनी की प्रतिमायें मंदिर मे स्थापित है । मंदिर मे स्थित गर्भगृह सुरंग पर मां की प्रतिमा विद्यमान है । यहाँ कई रत्नजडि़त छत्र हैं। ताम्रपत्र पर दुर्गा सप्तशती अंकित है । मंदिर मे स्थापना काल से ‘ अखंड ज्योति’ प्रज्जवलित है । यहाँ प्रमुख रुप से रोट का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।