प्रयागराज, पितरों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए शुक्रवार से एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृपक्ष में क्षौर कर्म से श्राद्ध करने वाले यजमानों से संगम तट गुलजार रहेगा।
भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले एक पखवाड़े का पितृपक्ष पर मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अंत: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम तट पिंडदान और तर्पण से गुलजार रहेगा। पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान से पूर्वजों को मोक्ष मिलने की पौराणिक अवधारणा रही है। मान्यता है कि संगम तट पर पिंडदान करने से पितरों को शांति मिल जाती है।
पिंडदान की परंपरा केवल प्रयाग, काशी और गया में है, लेकिन पितरों के पिंडदान और श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग में क्षौर कर्म से होती है। पितृपक्ष में हर साल बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए संगम आते हैं। पितृ मुक्ति का प्रथम एवं मुख्य द्वार कहे जाने के कारण संगमनगरी में पिंडदान और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है।
धर्म शास्त्रों में भगवान विष्णु को मोक्ष के देवता माना जाता है। प्रयाग में भगवान विष्णु बारह भिन्न रूपों में विराजमान हैं। मान्यता है कि त्रिवेणी में भगवान विष्णु बाल मुकुंद स्वरूप में वास करते हैं। प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और मुख्य द्वार माना जाता है। काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। प्रयाग में श्राद्ध कर्म का आरंभ मुंडन संस्कार से होता है।