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पूर्व दलित जज कर्णन के मामले मे, न्यायपालिका की हुई फजीहत का ठीकरा, सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया पर फोड़ा

नयी दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विवादित न्यायाधीश सीएस कर्णन अपनी  ‘अशोभनीय’ गतिविधि और आचरण के जरिये अदालत की अवमानना के अपने ‘गंभीरतम कृत्यों ‘ को लेकर दंडित होने के लिए उत्तरदायी हैं. उनके बयानों ने न्यायिक प्रणाली को ‘हंसी का पात्र ‘ बना दिया.

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सुप्रीम कोर्ट नेकोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस सीएस कर्णन को सुनायी गयी छह महीने की जेल की सजा पर विस्तृत आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका मामला  एक कार्यरत न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवार्इ से संबंधित था और इसने घरेलू तथा विदेशी दोनों मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा.

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पूर्व जस्टिस सीएस कर्नन ने सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संवैधानिक बेंच के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ये बातें न्यायिक व्यवस्था की छवि को खराब करने वाली थीं. पूर्व जस्टिस कर्नन के बयानों को मीडिया तरजीह न देती तो मामला तूल न पकड़ता, लेकिन स्थानीय समाचार पत्रों में कर्नन के बयान आने के बाद विदेशी मीडिया की नजर बात पर पड़ीं, फिर उसके बाद बीबीसी ने इसे बतंगड़ बना दिया.

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 सात सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने कर्नन पर दिए अपने फैसले में कुछ अन्य घटनाओं का हवाला दिया जिसने न्याय व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया. इसमें 28 अप्रैल का वह आदेश है जिसमें पूर्व जस्टिस ने एयर कंट्रोल अथॉरिटी को आदेश दिया कि संवैधानिक बेंच के सातों न्यायाधीशों को विदेश न जाने दिया जाए. सात मई को उन्होंने सातों जजों को पांच साल सश्रम कारावास की सजा सुना दी.

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अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी कर्णन ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपने सहयोगियों के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस न्यायालय द्वारा समय समय पर आदेश जारी किये जाने के बाद उनका आचरण और आक्रामक होता गया.

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ये सभी बातें देश विदेश में चर्चा का विषय बनी, जिसके चलते नौ मई को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नन को छह माह की कैद की सजा सुनाई। उसके बाद वह फरार हो गए और आखिर में कोयंबटूर में पुलिस के हत्थे चढ़े। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 80 पेज के फैसले में मीडिया की जमकर आलोचना की है, जिसकी वजह से कर्नन बेवजह महत्वपूर्ण हुए।

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