प्रयागराज, दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महाकुंभ मेला को दिव्य और भव्य बनाने के लिए ‘पेंट माय सिटी अभियान’ के तहत प्रयागराज की प्रमुख दीवारों पर आस्था के रंग इस प्रकार चढ़ाए जा रहे हैं जिससे आने वाले श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक -धार्मिक माहौल के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत की भी झलक देखने को मिले।
प्रयागराज में महाकुंभ मेले की तैयारी शुरू हो गई है और कुंभ नगरी धीरे धीरे अपने रंग में रंग रही है। मेले के दौरान लोगों को आध्यात्मिक -धार्मिक माहौल के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिले, इसके लिए अभी से तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। कुंभ के लिए ‘पेंट माय सिटी अभियान’ के तहत प्रयागराज की प्रमुख दीवारों, फ्लाईओवर के पिलर पर महाकुंभ का इतिहास चित्र, धार्मिक कथाएं, ऋषि मुनियों के चित्रों को उकेरने में कलाकार मशगूल हैं।
अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि प्रयागराज शहर को और यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अध्यात्म की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ‘पेंट माय सिटी अभियान’ चलाया जा रहा है। इसके लिए 10 लाख स्क्वायर फिट का लक्ष्य किया गया जबकि पांच लाख स्क्वायर फिट पर कार्य हो चुका है। इसमें महाकुंभ के इतिहास के चित्र, धार्मिक कथाओं के आदि के चित्रों को उकेरने का काम कलाकार बड़ी तल्लीनता से कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि डिजाइन का कार्य कन्टेट वेलीडेशन कमेटी से अप्रूव कराने के बाद ही इस कार्य को अंजाम दिया गया है। उन्होंने बताया कि यह सभी डिजायन कुंभ मेले पर, सनातन संस्कृति और हिंदू परंपरा से संबंधित डिजाइन दीवारों पर उकेरे जाते हैं।
उन्होंने बताया कि देश और दुनिया के कोने-कोने से बड़ी तादाद में श्रद्धालु पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचेंगे। उनके यहां पहुंचने पर उनको इस बात का आभास दिलाया जा सके कि वह दुनिया के सबसे बड़े आस्था के मेले में हैं। उनके हृदय में पवित्रता और आस्था का उत्तम तस्वीर उभरे जिसे वह अपने साथ दिव्य और भव्य महाकुंभ का सुंदर चित्रण अपने में संजोकर घर जाएं और लोगों में यहां के चित्रण का बखान कर सकें।
दीवार पर चित्र उकेर रहे कलाकार विवेक ने बताया कि देशी-विदेशी श्रद्धालुओं में आध्यात्मिकता का भाव उत्पन्न हो और वह अध्यात्म की मुख्यधारा से जुडें। उन्होंने बताया कि महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि एक घटना है जो सदियों से निरंतर चली आ रही है। यह वह समय है जब भक्त, संत, ऋषि-मुनि के साथ बच्चे, युवा, बुजुर्ग सभी आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं। मां गंगा की अविरल धारा में अमीर-गरीब, छुआछूत की सभी दीवारें ढह जाती हैं।