लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने भ्रष्टाचार के आरोप में खनन मंत्री के पद से हाल में बर्खास्त किये गये गायत्री प्रजापति को पिछले दिनों फिर से मंत्रिमण्डल में शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिलीप बाबासाहब भोंसले तथा न्यायमूर्ति राजन रॉय की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर की ओर से उनके वकील अशोक पाण्डेय तथा इस याचिका का विरोध कर रहे महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह की दलीलें सुनने के बाद मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। याचिका में कहा गया है कि प्रजापति को प्रदेश में हुए अवैध खनन की सीबीआई जांच के उच्च न्यायालय के आदेश और सीबीआई रिपोर्ट के बाद मंत्री पद से हटाया गया था। जब किसी मंत्री को संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत हटाया जाता है तो इसका सीधा मतलब होता कि उसने मुख्यमंत्री और राज्यपाल का विश्वास खो दिया है। ऐसे में उस व्यक्ति को तब तक मंत्री नहीं बनाया जा सकता, जब तक भरोसा उठने का कारण समाप्त नहीं हो जाता है। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि प्रजापति को मंत्रिमण्डल में फिर से शामिल किया जाना पूरी तरह से विधिसम्मत था। यह याचिका विचार करने योग्य नहीं है, लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिये। मालूम हो कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गत 12 सितम्बर को प्रजापति को भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। इसे आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश की छवि सुधारने की कोशिश माना गया था। इस कार्रवाई के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के परिवार में खींचतान होने पर प्रजापति को 26 सितम्बर को राज्य मंत्रिमण्डल में दोबारा शामिल किया गया था और उन्हें परिवहन मंत्री बनाया गया है।