लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने गायत्री प्रसाद प्रजापति को दोबारा मंत्री बनाये जाने के खिलाफ दायर याचिका शनिवार को खारिज कर दी। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने दायर की थी। मुख्य न्यायाधीश दिलीप बाबासाहेब भोसले और न्यायमूर्ति राजन रॉय की बेंच ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मनोज नरूला केस में यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी व्यक्ति को मंत्री बनाने का पूरा विशेषाधिकार प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को होता है। इस पर न्यायिक पुनरीक्षण नहीं हो सकता है, यद्यपि उनसे यह अपेक्षित है कि वे राष्ट्रपति या राज्यपाल को सही राय दें और अपराधियों, खास कर गंभीर अपराधों और भ्रष्टाचार के आरोपियों, को मंत्री न बनाएं।
अदालत ने कहा कि प्रजापति पर कई गंभीर आरोप हैं पर यह मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का मामला है। चूंकि इस सम्बन्ध में कोई संवैधानिक अयोग्यता नहीं बतायी गयी है। इसलिए अदालत के हाथ न्यायिक अधिकारों की सीमाओं के कारण बंधे हैं। न्यायालय ने कहा कि याचिका के खारिज होने को प्रजापति के पक्ष में कोई प्रमाणपत्र नहीं माना जाये और न ही नूतन के खिलाफ आदेश माना जाये। साथ ही प्रजापति पर चल रही जांच, मुकदमे आदि पूर्ववत चलते रहेंगे। नूतन के अधिवक्ता अशोक पाण्डेय ने बताया कि प्रजापति को राज्य सरकार द्वारा सीबीआई जांच के आदेश के खिलाफ दायर प्रार्थनापत्र के खारिज होने के बाद हटाया गया था। इसके साथ ही उन्होंने राज्यपाल का विश्वास खो दिया था। इसलिए उन्हें दोबारा मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए था।