प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में प्रयागराज में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ मेले में किले के अन्दर सेना की सुरक्षा में कैद अक्षयवट का श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। लम्बे समय से चल रही प्रयागवासियों और अन्य अन्य श्रद्धालुओं की अक्षयवट दर्शन करने की मांग अब पूरी होती नजर आ रही है। लम्बे समय से यमुना तट स्थित किले के अन्दर सुरक्षा घेरे में अक्षयवट का दर्शन कुछ खास लोगों को ही मयस्सर होता था एलेकिन शनिवार की देर शाम सर्किट हाउस में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने कुंभ की बैठक में ऐलान किया कि इस बार कुंभ स्नान करने आने वाले श्रद्धालुओं को अक्षयवट का दर्शन मिलेगा।
मुख्यमंत्री के निर्देश से श्रद्धालुओं को अक्षयवट के साथ किले में कैद सरस्वती कूप के भी दर्शन मिलेंगे। इसके लिए तैयारियां शुरू भी हो गयी हैं। मुख्यमंत्री के ष्अक्षयवट दर्शनष् के बयान का लोगों ने तहेदिल से स्वागत किया है। साधु संतों की जानी मानी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने मुख्यमंत्री के इस बयान का स्वागत किया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री को इसके लिए साधुवाद दिया। उन्होंने कहा कि अब कुंभ आने वाले श्रद्धालुओं को इस पवित्र वृक्ष के दर्शन हो सकेंगे। उन्होंने कहा कि इसे श्रद्धालुओं के लिए खोलने का परिषद भी अपनी बैठक में मांग उठा चुका है।
अभी तक अक्षयवट का दर्शन कुछ बहुत खास ही लोगों को मिलता है। अभी तक वीआईपी घाट से अन्दर जाकर श्रद्धालु एक अन्य ष्अक्षयवटष् का दर्शन करते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से सेना के जवान आम लोगों को अक्षयवट का दर्शन नहीं कराते हैं। आम लोगों के लिए खुले इस अक्षयवट को ही वहां के पंडित असली बताते हैं और लोगों को दर्शन करने की बात करते हैं। इस अक्षयवट के चारों ओर लिपटे लाल कपडे पर श्अक्षयवट बाबा की जयष् लिखा है। ग्रामीण या बाहर से आने वाले श्रद्धालु इसी को ही अक्षयवट मानकर श्रद्धापूर्वक दर्शन कर वापस लाैट जाते रहे। इस अक्षयवट को संत और विद्वतजन असली नहीं मानते। सेना के कब्जे वाला असल वटवृक्ष है या फिर यह आम लोगों काी पहुंच वालाए यह भ्रांति बना हुआ है।
इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में मध्यकालीन आधुनिक इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो योगश्वर तिवारी ने अक्षयवट श्रद्धालुओं के लिए खोलने के ऐलान का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह बड़ी खुशी की बात हैए लम्बे समय से लोगों की मांग पूरी होगी। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति शिवनाथ काटजू जिस अक्षयवट की खोज 1950 में की थी वह पातालपुरी मंदिर से दूर था। अक्षयवट को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। भ्रम दूर करने के लिए सरकार को इतिहासकारों की टीम गठितकर शोध कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो अक्षयवट सेना के संरक्षण में किले में कैद है उसे श्रद्धालुओं के दर्शन पूजन के लिए सुलाभ कराना चाहिए।