पेरिस, फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए 23 अप्रैल को डाले जाएंगे । इस चुनाव में फ्रांस्वा ओलांद का उत्तराधिकारी चुना जाएगा। सात मई को पहले दौर के शीर्ष दो उम्मीदवारों के बीच अंतिम फैसला होगा। यह चुनावी नतीजा फ्रांस और यूरोपीय संघ को नया रूप तो देगा ही, यूरोपीय देशों के रिश्तों के उस ताने-बाने पर भी बड़ा असर डालेगा, जिससे अलग होकर ब्रेग्जिट ब्रिटेन अपनी नई राह गढ़ रहा है। मगर जिस तरह से इस चुनाव के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता, इसके नतीजे पर भी कुछ कहना अतिशयोक्ति होगी।
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एलीसी पैलेस (राष्ट्रपति भवन) की दौड़ अब और अनिश्चित दिखने लगी है। फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में यूं तो कई उम्मीदवार हैं लेकिन असली मुकाबला विपरीत दिशाओं वाले नेताओं में है।इमन्यूएल मैखुम मध्यमार्गी और यूरोप समर्थक हैं, जबकि मारीन लेपन दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट और ईयू विरोधी हैं। हाल-हाल तक ऐसा लग रहा था कि मुकाबला धुर दक्षिणपंथी फ्रंट नेशनल की उम्मीदवार मरीन ली पेन और मध्यमार्गी इमन्यूएल मैखुम के बीच है, पर अब जंग चतुष्कोणीय दिखने लगी है।
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इसमें अब उदार-दक्षिणपंथी फ्रांस्वा फियम और धुर वामपंथी जॉनलिक मेलेनशॉन भी शामिल हो गए हैं। बहरहाल, मेलेनशॉन जिस तेजी से चुनावी परिदृश्य में उभरे हैं, वह सबसे ज्यादा ध्यान खींचता है। सत्ता-विरोधी रुझान के जरिये वह लोगों को गोलबंद तो कर ही रहे हैं, अपने उम्मीदवार बेनोइट हामोन के प्रचार में सत्तारूढ़ सोशलिस्ट पार्टी की गलतियों का फायदा भी उठा रहे हैं।
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उन्होंने टैक्स दरों को बढ़ाने, सार्वजनिक खर्चों में वृद्धि करने, राष्ट्रीयकरण और सोवियत संघ की संधियों को खत्म करने का वायदा किया है। वैसे, ली पेन और मैखुम अब भी वोटरों के पसंदीदा बने हुए हैं। ली पेन जहां वैश्वीकरण विरोधी, आप्रवासन विरोधी और आक्रामक रूप से यूरोपीय संघ विरोधी रुख अपनाए हुई हैं, वहीं मैखुम एक ऐसे फ्रांस की वकालत कर रहे हैं, जो खुला हो और विविधताओं को समेटे हुए हो। मैखुम श्रम बाजार में सुधार और सार्वजनिक खर्चों को व्यवस्थित करने के भी पक्षधर हैं।
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