लखनऊ, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने बुधवार को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) द्वारा नोटबंदी के बाद दिल्ली के करोल बाग स्थित युनियन बैंक ऑफ इंडिया के पार्टी खाते में 104 करोड़ रुपए के पुराने नोट जमा करने पर निर्वाचन आयोग को तीन महीने में निर्णय लिए जाने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता प्रताप चन्द्र की अधिवक्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने बुधवार को बताया कि न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति संजय हरकौली की बेंच ने निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता मनीष माथुर को सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि निर्वाचन आयोग को तीन माह में इस मामले में निर्णय ले। डॉ. नूतन ने अदालत को बताया कि निर्वाचन आयोग ने 29 अगस्त 2014 द्वारा वित्तीय पारदर्शिता सम्बन्धी कई निर्देश पारित किए हैं, जिन्हें आयोग ने अपने आदेश 19 नवम्बर 2014 के आदेश में और अधिक स्पष्ट किया है। इन आदेशों में कहा गया है कि कोई भी राजनैतिक दल उन्हें चंदे में प्राप्त नकद धनराशि को प्राप्ति के 10 कार्यकारी दिवस के अन्दर पार्टी के बैंक अकाउंट में अवश्य ही जमा करा दे। यदि किसी पार्टी ने इन निर्देशों का उल्लंघन किया है तो उसके खिलाफ निर्वाचन चिन्ह (आरक्षण एवं बटाई) आर्डर 1968 के प्रस्तर 16-ए में पार्टी की मान्यता रद्द करने सहित तमाम कार्यवाही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का आदेश आठ नवम्बर को आया था। इसलिए इन निर्देशों के अनुसार अधिकतम 20 नवम्बर तक नकद धनराशि बैंक खाते में जमा कर देना चाहिए था, पर बसपा ने दो दिसम्बर के बाद 104 करोड़ रुपए जमा कराए, जो सीधे-सीधे इन निर्देशों का उल्लंघन है। निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता मनीष माथुर ने कहा कि आयोग को प्रताप चंद्रा की शिकायत मिल गई है पर वर्तमान में विधानसभा चुनाव कराने की व्यवस्तता के कारण उस पर निर्णय हेतु कुछ समय की आवश्यकता है। इस पर अदालत ने निर्वाचन आयोग को तीन महीने में इस मामले पर निर्णय लेने का आदेश दिया है।