इटावा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संस्थापक कांशीराम पहली दफा यूं तो पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘हाथी’ के साथ इटावा लोकसभा सीट के लिये मैदान पर उतरे थे मगर उनकी इस जीत में ‘साइकिल’ का बड़ा योगदान रहा है।
कांशीराम के चुनाव प्रबंधन प्रभारी रहे बसपा के दिग्गज नेता खादिम अब्बास ने आज यहां यूनीवार्ता से बातचीत में कहा “ जब बसपा संस्थापक काशीराम इटावा संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरे तो चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जनता के बीच जाने का माध्यम साइकिल चुना। उनकी इस भावना का इटावा की जनता ने पूरा सम्मान किया और जब नतीजे सामने आए तो काशीराम को पहली दफा संसदीय चुनाव में इटावा संसदीय सीट से जीत हासिल हुई।
उन्होंने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान लाल सिंह लोधी, देवेंद्र सिंह यादव,चंद्रभान काछी और वो खुद साइकिल से जगह-जगह वोट मांगा करते थे। करीब 25000 किलोमीटर की साइकिल यात्रा वोट मांगने के दौरान की गई थी।
गौरतलब है कि इटावा लोकसभा क्षेत्र आरक्षित सीट हुए बगैर ही वर्ष 1991 में हुए इटावा लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। चुनाव में कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले और उनके समकक्ष भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 1 लाख 21 हजार 824 मत कम मिलने से जीत कांशीराम को मिली थी जबकि मुलायम सिंह यादव की जनता पार्टी से लडे रामसिंह शाक्य को मात्र 82624 मत ही मिले थे।
खादिम अब्बास की माने तो कांशीराम ने अपने शर्तो के अनुरूप मुलायम सिंह यादव से खुद की पार्टी यानि समाजवादी पार्टी गठन करवाया और तालमेल किया। 1991 में कांशीराम की इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था । कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला लेकिन 2 जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनो दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गये।
इटावा के लोगो ने कांशीराम को एक ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी कांशीराम को एक अर्से से तलाश थी। कहा यह जाता है कि 1991 के आम चुनाव मे इटावा मे जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले के चुनाव को दुबारा कराया गया था। दुबारा हुये चुनाव मे बसपा सुप्रीमो कांशीराम ने खुद संसदीय चुनाव मे उतरे। मुलायम सिंह यादव ने समय की नब्ज को समझा और कांशीराम की मदद की जिसके एवज मे कांशीराम ने बसपा से कोई प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के लिये जसवंतनगर विधानसभा से नही उतारा जबकि जिले की हर विधानसभा से बसपा ने अपने प्रत्याशी उतरे थे।
चुनाव लड़ने के दौरान कांशीराम इटावा मुख्यालय के पुरबिया टोला रोड पर स्थित अनुपम होटल मे करीब एक महीने रहे थे। वैसे अनुपम होटल के सभी 28 कमरो को एक महीने तक के लिये बुक करा लिया गया था लेकिन कांशीराम खुद कमरा नंबर 6 मे रूकते थे और 7 नंबर मे उनका सामान रखा रहता था। इसी होटल मे कांशीराम ने अपने चुनाव कार्यालय भी खोला था।
अब्बास बताते है कि उस समय मोबाइल की सुविधा नही हुआ करती थी और कांशीराम के लिये खासी तादात मे फोन आया करते थे इसी वजह से कांशीराम के लिये एक फोन लाइन उनके कमरे मे सीधी डलवा दी गई थी जिससे वो अपने लोगो के संपर्क मे लगातार बने रहते थे। कांशीराम के चुनाव मे गाडियो के लिये डीजल आदि की व्यवस्था देखने वाले आर.के.चौधरी बाद मे उत्तर प्रदेश मे सपा बसपा की सरकार मे परिवहन मंत्री बने। कांशीराम को नीला रंग सबसे अधिक पंसद था इसी वजह से उन्होने अपनी कंटेसा गाडी को नीले रंग से ही पुतवा दिया था पूरे चुनाव प्रचार मे कांशीराम ने सिर्फ इसी गाडी से प्रचार किया। इटावा ने पहली बार कांशीराम को 1991 में सांसद बनवाकर संसद पहुचाया था। इसी वजह से कांशीराम को इटावा से खासा लगाव रहा है। आज भी इटावा में कांशीराम के संस्मरण सुनाने वालो की कोई कमी नही है।