बागपत, बागपत में कभी वो समय था जब रालोद के नाम का डंका बजता था। तीनों विधान सभा से लेकर लोकसभा सीट पर रालोद का दबदबा कायम था। चौधरी चरण सिंह के नाम और काम को यहां के लोगों ने याद भी किया और उसका हक भी अदा किया। यही कारण रहा कि बागपत में रालोद ने 40 सालों तक राज किया लेकिन मोदी के नाम की हवा से बागपत भी अछूता नहीं रहा और रालोद के कई धुरंधर चौधरी अजित सिंह का साथ छोड़ गए। रालोद की छत्रछाया में वर्षों तक बागपत विधान सभा सीट पर राज करने वाले नवाब कोकब हमीद ने भी साथ छोड़ दिया। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष योगेश धामा भी रालोद छोड़ भाजपा में शामिल हो गये।
रालोद को सबसे बड़ा झटका योगेश धामा से लगा जिसके दम पर रालोद बागपत में खड़ी थी । चौधरी अजित सिंह को इतना दर्द किसी अन्य के रालोद छोड़ने का नही था जितना योगेश धामा के पार्टी छोड़ने का हुआ। दोनों में वार्ता भी हुई लेकिन कोई ज्यादा फायदा नहीं हुआ। एक ओर जहां अजित सिंह योगेश धामा की बढ़ती प्रतिष्ठा को लेकर चिंतित थे वहीं योगेश धामा भी अपने वजूद को तलाश रहे थे ,दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ती चली गयी और आखिर योगेश धामा बीजेपी में शामिल हो गए। इसी बात को लेकर रालोद मुखिया ने मन में ठान लिया कि क्यों न बागपत से योगेश धामा की राजनीति का ही सफाया कर दिया जाये। इसके लिये प्लान तैयार किया गया और बागपत सीट पर योगेश धामा के सामने करतार भड़ाना को उतारा गया। करतार भड़ाना पर इसलिये भी दांव लगाया गया कि आज तक वो किसी चुनाव को नहीं हारे और पैसे के बल पर उन्होंने बहुत चुनावों की हवा बदली है। आज दोनों प्रत्याशी मैदान में हैं लेकिन हाल ही के सर्वे ने चौधरी अजित सिंह की नींद उड़ा दी है और करतार भड़ाना को तीसरे नम्बर का दर्जा दिया गया।
राजनीति के इस खिलाड़ी को यह सब रास नही आया क्योकि इस चुनाव में बागपत सीट ही ऐसी है जिस पर अजित सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, जिसको देखते हुये खुद चौधरी अजित सिंह मैदान पर उतर आये हैं और बागपत में कई जनसभाओं को संबोधित कर रहे है। इतना ही नही जयंत चौधरी और बहू चारु ने भी मोर्चा थाम लिया है, चौधरी साहब की बौखलाहट वाजिब भी है, राजनीति के लोगों की मानें तो योगेश धामा इस समय नम्बर वन की स्थिति में हैं। जिसने छोटे चौधरी को भी जमीन पर आने के लिए मजबूर कर दिया है। हालांकि यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा की बागपत सीट पर किसकी जीत होती है और किसकी हार लेकिन इतना तय है कि इस चुनाव से बागपत की राजनीति का एक नया अध्याय लिखा जायेगा जिसमे एक खिलाडी को बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा।