नई दिल्ली, विवादित ढांचा विध्वंस मामले में आज दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले में नया मोड़ ले लिया है। 25 वर्षों के बाद एक बार फिर से यह मामला अति-महत्वपूर्ण बन गया है। इस मामले में कोर्ट ने जिन 14 नेताओं पर मामला चलाने को लेकर आदेश दिया है वह नाम उस वक्त सभी की जुबान पर थे। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही इन सभी नेताओं पर मामला चलाने का निर्णय मामले के 25 वर्षों के बाद लिया हो लेकिन इस मामले की जांच के लिए बनाए गए लिब्राहन आयोग ने उस वक्त करीब 68 लोगों को दोषी ठहराते हुए उनपर मामला चलाने की सिफारिश तत्कालीन नरसिंह राव सरकार से की थी।
मामले की जांच के लिए 16 दिसंबर 1992 को इस आयोग का गठन हुया था। आयोग को अपनी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर पेश करनी थी, लेकिन इसका कार्यकाल लगातार 48 बार बढ़ाया गया। करीब 17 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद अंततः आयोग ने 30 जून 2009 को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी। लिब्राहन आयोग की इस रिपोर्ट को 24 नवंबर 2009 को संसद में पेश किया गया था। इसमें बाबरी विध्वंस को सुनियोजित साजिश करार देते हुए आरएसएस और कुछ अन्य संगठनों की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी आयोग ने सवाल उठाए थे। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जिन 68 लोगों को दोषी ठहराया था उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, शिव सेना के अध्यक्ष बाल ठाकरे, विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन, के एन गोविंदाचार्य, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और प्रवीण तोगड़िया के नाम भी शामिल थे।
इस रिपोर्ट में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह पर उन्हें घटना का मूकदर्शक बताते आयोग ने तीखी टिप्पणी की थी। आयोग का कहना था कि कल्याण सिंह ने इस घटना को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और आरएसएस को अतिरिक्त संवैधानिक अधिकार दे दिए। इस मामले की जांच के लिए बनाया गया एक सदस्यीय लिब्राहन आयोग देश में अब तक का सबसे लंबे चलने वाला जांच आयोग है। इस पर सरकार को करीब आठ करोड़ रुपये का खर्च वहन करना पड़ा था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यूपी की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। आयोग ने अगस्त 2005 में अपने आखिरी गवाह कल्याण सिंह से सुनवाई पूरी की थी। इस आयोग के समक्ष उनके अलावा पीवी नरसिंह राव, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और मुलायम सिंह यादव के अलावा कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों पेश कर अपने बयान दर्ज कराए थे।