पटना, बिहार सरकार ने, पिछड़ा एवं अत्यंत पिछड़ा वर्ग को न्यायिक सेवा में आरक्षण का लाभ देने के लिए नियुक्ति नियमावली में जरूरी संशोधन करने की कवायद 27वीं संयुक्त न्यायिक सेवा नियुक्ति, सिविल जज परीक्षा के दौरान की थी। लेकिन, पटना हाईकोर्ट ने संशोधन को असंवैधानिक करार देते हुए दयानंद सिंह और नीरज कुमार बनाम बिहार राज्य सरकार के मामलों में क्रमशः सिविल जज जिला जज की नियुक्ति में पिछड़ा तथा अति पिछड़ा वर्ग को न्यायिक सेवा में आरक्षण का लाभ दिए जाने को गैर कानूनी करार दिया था।
पटना हाईकोर्ट ने संशोधन को इस आधार पर असंवैधानिक करार दे दे दिया था कि राज्य सरकार ने आरक्षण लागू करने के लिए हाईकोर्ट से परामर्श नहीं लिया था। सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अगस्त, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से परामर्श को संवैधानिक अनिवार्यता करार देते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया था कि न्यायिक सेवा की नियुक्ति में पिछड़ा एवं अत्यंत पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का लाभ देने के लिए पटना हाईकोर्ट से 1 जनवरी, 2017 तक परामर्श लेने की प्रक्रिया पूरी कर समस्त नियुक्ति प्रक्रिया को जून, 2017 तक पूरा करें। सरकारने इसके बाद हाईकोर्ट को परामर्श के लिए ज्ञापन सौंपा। तब हाईकोर्ट ने फुलकोर्ट की मीटिंग में लिए गए प्रशासनिक निर्णय से राज्य सरकार को सकारात्मक परामर्श देते हुए न्यायिक सेवा में आरक्षण का लाभ पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग को देने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के तहत बिहारमें अब अनुमंडल एवं जिला अदालतों में न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति में आरक्षण लागू होगा। अब सब-ऑर्डिनेट न्यायिक सेवा में एससी/एसटी को मिल रहे आरक्षण के अलावा पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण मिलेगा। अभी एडीजे की नियुक्ति में आरक्षण लागू नहीं था। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के 100 पदों के लिए विज्ञापित नियुक्ति से ही यह प्रभावी होगा। इसमें महिलाओं को भी 35% क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिलेगा।