बागपत, उत्तर प्रदेश में बागपत के जिला जेल में सोमवार को गोली का शिकार हुए कुख्यात अपराधी प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी को करीब 20 साल पहले दिल्ली में हुई एक मुठभेड़ में सात गोली लगने के बाद पुलिस ने मृत समझकर उसे पोस्टमार्टम के लिये अस्पताल भेज दिया था।
अस्पताल में चिकित्सकों को उसकी सांस चलती मिलने पर उसका उपचार किया और वह स्वस्थ हो गया। इस मुठभेड में उसे सात गोलियां लगी थीं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुन्ना बजरंगी का नाम करीब ढ़ाई दशक पहले आया था। उसे मुन्ना नाम से जाना जाता था। पश्चिम में मुन्ना का दोस्त यतेंद्र गुर्जर था। गाजियाबाद के महावड गांव के रहने वाले यतेंद्र की दोस्ती बजरंगी और उसके रिश्तेदार अजय सिंह से थी। अजय भी अपराध की दुनिया में सक्रिय था। हांलाकि उसके पिता जी एन सिंह उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस में क्षेत्राधिकारी के पद पर तैनात थे।
गाजियाबाद के ही भोपुरा गांव निवासी राकेश ने साहिबाबाद क्षेत्र के राजेंद्र नगर में एक ही प्लॉट दो लोगों को बिकवा दिया था। हालांकि इसमें हेराफेरी दिल्ली के बदमाश ने की थी लेकिन फ्रंट पर राकेश ही था। एक खरीदार की रिश्तेदारी सुशील मूंछ के साथी यशपाल राठी से और दूसरे के संबंध अजय सिंह से थे। इसी प्लॉट पर हुई गोलीबारी में अजय सिंह की मौत हो गई और यशपाल राठी गोली लगने से घायल हो गया। यशपाल का साथी संजीव ढाका भी मौके पर ही मारा गया था। पुलिस ने एक त्यागी ट्रांसपोर्टर को मौके से गिरफतार भी किया था। हालांकि अदालत ने उसे बाद में निर्दोष माना था।
इसके तीन दिन बाद ही भोपुरा के राकेश गूर्जर और उसके पिता को गांव में अलग.अलग जगहों पर एक ही दिन गोलियों से भून दिया गया। इन हत्याओं में मुन्ना बजरंगी का नाम आया था। यही वह घटना है जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बजरंगी का नाम पहली बार सुना था। हालांकि ये दोनों हत्याएं यतेंद्र गूर्जर ने की थीं। इसके बाद डी पी यादव के भाई राम सिंह और उनके गनर को गाजियाबाद के राजनगर में अंधाधुंध गोलियां बरसाकर मौत के घाट उतार दिया गया था। सतबीर गुजर के अनुयायी यतेंद्र ने ही अपने एक साथी के साथ मिलकर इस घटना को अंजाम दिया था। हालांकि पुलिस ने यह मामला अनट्रेस लिस्ट में डाल दिया था। इस मामले में भी बजरंगी का नाम आया था।