मथुरा, उत्तर प्रदेश के मथुरा में हरियाली तीज पर बांके बिहारी मन्दिर में स्वर्ण हिडोला निकलने के साथ ही ब्रज के मन्दिरों में हिंडोला उत्सव की ऐसी धूम मच जाती और कोना कोना श्यामा श्याम मय हो जाता है। इस बार यह हिंडोला 11 अगस्त को निकाला जाएगा।
यशोदा भाव से सेवा होने के कारण वृन्दावन के लगभग हर मन्दिर में इस दिन से हिंडोला डाला जाता है। उत्तर को दक्षिण से जोड़ने वाले रंगनाथ मन्दिर तक में उस दिन हिंडोला डाला जाता है । बांकेबिहारी मन्दिर के स्वर्ण हिंडोले को देखने के लिए उस दिन मन्दिर में न केवल भक्तों में होड़ सी मच जाती है बल्कि इस दिन वृन्दावन में मेला लग जाता है।
बांकेबिहारी मन्दिर के स्वर्ण हिंडोले को बनारस के कारीगरों बिहारीलाल एवं लल्लन ने इतना भव्य बनाया कि निर्माण के लगभग 74 वर्ष बाद भी ऐसा लगता है, जैसे यह आज ही बनाया गया है।
इस हिंडोले को बनवाने के पहले सेठ हरगूलाल ने लाड़ली मन्दिर बरसाना का हिंडोला इन्ही कारीगरों से बनवाया था और उनसे कहा था कि यदि वे इसे सुन्दर बनाएंगे तो इससे बड़ा हिंडोला वे बिहारीजी महराज के लिए बनवाएंगे।
सेठ हरगूलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाल ने यह रहस्योदघाटन करते हुए बताया कि बिहारी जी के हिंडोले में एक लाख तोला चांदी और दो हजार तोला सोना लगा है। शीशम की लकड़ी पर चपड़ा लगाकर उसके ऊपर हिंडोले को लगाया गया है। इस हिंडोले को 15 अगस्त 1947 को पहली बार निकाला गया था । यह हिंडोला एक प्रकार से आजादी की वर्षगांठ की याद दिलाता है।हिंडोले के साथ में चार मानव कद की सखियां भी मौजूद रहती है।
बांके बिहारी मन्दिर के राजभोग सेवा अधिकारी ज्ञानेन्द्र किशोर गोस्वामी ने बताया कि हिंडोले के पीछे जगमोहन में ठाकुर की सेज बनाई जाती है ,जिस पर श्रंगार पिटारी रखी जाती है। बीच-बीच में किशोरी जी जब झूला झूलते थक जाती हैं तो श्यामा श्याम सेज पर चले जाते हैं। यहां पर झूला झूलने से किशोरी जी का वे दुबारा श्रंगार करते हैं क्योंकि हिंडोले की हवा से किशोरी जी का श्रंगार खराब हो जाता है। किशोरी जी का पूरी तरह से श्रंगार करने के बाद श्यामसुन्दर उनकी चरण सेवा भी करते है। उन्होंने बताया कि भाव यह है कि हिंडोले में पैर लटकाने से किशोरी जी को थकान होने लगती है। इसके बाद हिंडोले पर पुनः बैठते ही ठाकुर श्यामा प्यारी का आह्वान करते हुए कहते हैं ’’राधे झूलन पधारो घिर आए बदरा’’।
उधर मन्दिर के जगमोहन से शयन भोग सेवा अधिकारी भक्तों पर प्रसाद स्वरूप पिचकारी से गुलाब जल की वर्षा सी रूक रूककर करते हैं।आरती के साथ ही बिहारी जी मन्दिर का हिंडोला उत्सव समाप्त हो जाता है ।
कृष्ण बलराम मन्दिर के जनसंपर्क विभाग के निदेशक बिमल कृष्ण दास ने बताया कि हरियाली तीज पर मन्दिर के तीनों विगृहों को हरीतिमा युक्त कर कुंज का स्वरूप दिया जाता है । भाव यह है कि श्यामा श्याम कुंज में पधारकर लीला करते हैं। सप्त देवालयों समेत अन्य मन्दिरों में नित्य बदल बदलकर हिंडोले डाले जाते हैं जो सोने, चांदी से लेकर , फूल, फल, पत्ती आदि के बनते हैं। भाव यह है कि मां यशोदा अपने लाला के लिए बदल बदलकर हिंडोला इसलिए डालती हैं कि नित्य नया हिंडोला होने के कारण उनका लाला खुशी खुशी उस पर बैठ जायेगा और मां यशोदा हिंडोले में कान्हा को सुलाकर अपना काम कर सकेंगी।कुल मिलाकर इस सारे वातावरण में द्वापर का प्रतिबिम्ब बन जाता है जिससे भक्ति नृत्य करने लगती है।