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भारतरत्न डॉ़ भीमराव अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या संगोष्ठी का आयोजन

सुलतानपुर,  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुसांगिक संगठन धर्म जागरण समन्वय पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रमुख अभय जी ने आज यहां कहा कि डॉ़ भीमराव अंबेडकर देश में संस्कृत भाषा को राजभाषा बनाने के प्रबल समर्थक थे। वह कहते थे कि देश की राष्ट्र भाषा संस्कृत हो। इसके लिए उन्होंने संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाने का प्रस्ताव भी दिया था।

भारतरत्न डॉ भीम राव अंबेडकर की जयंती की पूर्व संध्या पर के एन आई कैम्पस के सीएसए हाल में आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए श्री अभय जी ने कहा कि डॉ अंबेडकर को लगता था कि तमिल उत्तर भारत में स्वीकार्य न हो। उसी तरह हिंदी दक्षिण भारत में स्वीकार्य न हो, लेकिन संस्कृत को लेकर उत्तर और दक्षिण में विरोध की कोई आशंका नहीं थी। शायद यही वजह है कि अंबेडकर ने संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाने का प्रस्ताव दिया था। देश को स्वाधीनता मिले दो साल बीत चुके थे। आजाद भारत को नया विधान देने के लिए संविधान सभा लगातार कार्य कर रही थी। भारत की राजभाषा क्या हो, इसे लेकर प्रस्ताव आने वाला था। संविधान सभा में भाषा का सवाल उठने के ठीक एक दिन पहले 11 सितंबर 1949 को ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार में एक खबर छपी, ‘संस्कृत के साथ अंबेडकर।’ उन दिनों इस समाचार ने देश को चौंका दिया था।

डॉ. अंबेडकर ने यह प्रस्ताव राष्ट्रभाषा व्यवस्था परिषद् के उस प्रस्ताव के संशोधन के रूप में दिया था, जिसमें परिषद ने कहा था कि अंग्रेजी की जगह हिंदी को निश्चित रूप से प्रतिष्ठित किया जाए। उसे अंग्रेजी की जगह लेने के लिए दस साल से ज्यादा का वक्त भी नहीं लगना चाहिए। परिषद ने इसी प्रस्ताव में सुझाव दिया था कि भारतीय संघ के सभी प्रान्त अपनी-अपनी स्थानीय एवं प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हों। लेकिन उनकी शिक्षा व्यवस्था में दो भारतीय भाषाओं की पढ़ाई अनिवार्य होगी। तत्कालीन सरकार को भेजे इसी प्रस्ताव में राष्ट्रभाषा व्यवस्था परिषद् ने यह भी सुझाव दिया था कि आदर्श वाक्यों, उपाधियों आदि तथा शोभनीय-प्रसिद्ध जगहों के लिए भारतीय संघ को संस्कृत का प्रयोग करना।

डॉ. अंबेडकर की जीवनियों से गुजरते हैं तो पता चलता है कि अपनी पढ़ाई के दिनों में वे संस्कृत का विधिवत अध्ययन करना चाहते थे। लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया। लेकिन जब वे जर्मनी की बोन यूनिवर्सिटी में पढ़ने पहुंचे तो उन्होंने वहां संस्कृत का विधिवत अध्ययन किया।

डॉ़ अंबेडकर की 130वीं जयंती पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे ने भी डॉ़ अंबेडकर के इस संस्कृत प्रेम का हवाला दिया था। उन्होंने कहा था कि डॉ़ अंबेडकर ने भारत की भावी भाषा समस्या को समझ लिया था। इसीलिए उन्होंने भारत की आधिकारिक भाषा संस्कृत को बनाने का प्रस्ताव रखा था।

श्री अभय ने कहाकि देश में अस्पृश्यता भारत के पूर्वजों की देन नही थी इसलिए हमारे पूर्वज इसके लिए दोषी नही है। अस्पृश्यता देश में गैर भारतीयों ने पैदा की।

इससे पहले विभाग संघचालक डॉ ए के सिंह ने डॉ अंबेडकर के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समाज में छुआछूत और दलितों के उपेक्षा से बहुत द्रवित रहे।

संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ राजेश गौतम ने तथा संचालन डॉ प्रीति प्रकाश ने किया। अतिथि परिचय सह प्रमुख विचार परिवार डॉ अभिषेक पांडेय तथा अंगवस्त्र व प्रतीक चिन्ह प्रदानकर डॉ ए एन सिंह, रेवती रमण, राकेशमणि त्रिपाठी ने सम्मान किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ पवनेश मिश्र, विभाग संपर्क प्रमुख ने किया।

कार्यक्रम में विभाग प्रचारक श्रीप्रकाश जी, जिला प्रचारक आशीष जी, एच डी राम, के एन आई के रजिस्ट्रार अखिलेश चौहान, सुदीप पाल, डॉ दिनेश, डॉ श्याम करन, रमेश बौद्ध, डॉ प्रज्ञा प्रभाकर, धर्मराज बौद्ध, डॉ रमाशंकर मिश्र, महेश सिंह, रमाशकर राम, ओम प्रकाश गौतम, डॉ सुधाकर सिंह, डॉ जे पी सिंह, शक्ति प्रकाश, अजय अजय गुप्ता, अभिषेक शुक्ला, अजय सिंह, अर्चित बरनवाल आदि मौजूद रहे।