गोरखपुर, भारतीय वैज्ञानिकों का दावा है कि ऋषि महर्षियों के ज्ञान को आधार बना पश्चात्य जगत आज अपनी भौतिक उपलब्धियों पर इतराता है।
उन्होने कहा कि भारत के प्राचीन धर्मशास्त्रों एवं साहित्यों में ज्ञान विज्ञान, ज्योतिष,गणित, चिकित्सा,रसायन आदि के अथाह भण्डार संचित हैं। आईआईटी बीएचयू के रसायन शास्त्र विभाग के आचार्य डॉ वी रामानाथन नें गोरखपुर जिले के महाराणा प्रताप महाविद्यालय,जंगल धूसड़ गोरखपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ स्मृति सप्त दिवसीय ऑनलाइन व्याख्यान माला के उद्घाटन अवसर पर सोमवार कहा कि भारतीय मनीषियों ने अपने इन संचित ज्ञान भण्डारों का उपयोग समस्त मानव.जाति के लिए बिना किसी भेद.भाव के किया।
उन्होंने कहा कि इन्ही ऋषि महर्षियों के ज्ञान को आधार बना पश्चात्य जगत आज अपनी भौतिक उपलब्धियों पर इतराता है। उन उपलब्धियों को अपनी स्वयं की खोज बताता है। हमारा प्राचीन वैदिक ज्ञान चूँकि श्रुति आधारित थाए इसलिए समय के साथ.साथ उसका अधिकांश हिस्सा समाज में विस्मृत कर दिया गया।
आचार्य रामानाथन ने कहा कि यदि हमें आज विश्व सिर.मौर और विश्वगुरु बनना है तो निश्चित रुप से हमें अपने प्राचीन ज्ञान की जड़ों को खोजना ही होगा। ज्ञान की जिस विद्या में भारत ईसा की पूर्व शताब्दियों में ही सिद्ध.हस्त हो चुका थाए उसी ज्ञान का उपयोग कर पाश्चात्य जगत ने 15वीं.16वीं शताब्दी में अपने को परिष्कृत कर अपनी श्रेष्ठवादिता का प्रवर्तन किया।
छन्दशास्त्र,ग्रन्थरत्नाकर,पिंगलछन्दशास्त्र,सुश्रुत संहिता,काशिकावृत्ति इत्यादि ऐसे वैदिक साहित्य हैं जिन्हे आधार बनाकर पाश्चात्य संस्कृतियों ने अपनी हनक स्थापित की। चूँकि भारत लम्बे समय तक विदेशी आधिपत्य में रहाए इसलिए भारतीय ज्ञान स्रोतों को बड़े पैमाने पर नष्ट किया गया। उन्होंने कहा कि जिस ज्ञान का प्रतिपादन भारतीय विद्वानों ने कियाए उसका श्रेय पाश्चात्य जगत के तथाकथित दार्शनिकों,विचारकों एवं विद्वानों नें लूट लिया। हम महर्षि पिंगल का ही उदाहरण लेंए तो पायेंगे कि उनके द्वारा गणित,ज्योतिष भाषा एवं व्याकरण के क्षेत्रों में जो सिद्धांत स्थापित किए गये आज भी पीढ़ी उसके प्रतिपादक के रूप में पाश्चात्य विद्वान पास्कल को पढ़ती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का और क्या हो सकता है कि हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी अपनी पुरातनताए संस्कृति,परम्पराए पुरातन ज्ञान और दर्शन के विषय में अनभिज्ञ है।