चूड़ियां भारतीय स्त्री के सोलह श्रृंगार का एक हिस्सा है। दुल्हन एवं विवाहित स्त्रियों के लिए चूडियां पहनना अनिवार्य है एवं वे कांच, सोने व अन्य धातुओं से बनी चूडियों को पहन सकती हैं। सुंदरता ही नहीं स्वास्थ्य भी निखारती है बिंदी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए चूडियां पहनती हैं एवं इन्हें भाग्य एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। परंपरागत रूप से चूडियों का टूटना अशुभ माना जाता है। देश के विभिन्न राज्यों के लोग इन चूडियों को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं। लेकिन, इन भौगोलिक सीमाओं के बावजूद भारतीय शादियों में इनका महत्व एक समान है।
चूड़ियों का पारंपरिक महत्व हर क्षेत्र में इन चूडियों को पहनाने की परंपरा अनूठी है। नवविवाहित स्त्री को चूडियां इसलिए पहनाई जाती हैं ताकि उसकी आने वाली जिंदगी प्यार व स्नेह से भरी रहे। अतः पहनाते वक्त चूडियां ना टूटें इसका खास ख्याल रखा जाता है।
दक्षिण भारत दक्षिण भारत में सोने को बेहद शुभ माना गया है। कुछ समुदायों के लोग, दुल्हन के होथों में सोने की चूडियों सहित हरे कांच की चूडियां पहनाते हैं क्योंकि हरा रंग उर्वरता व समृद्धि का प्रतीक है।
पंजाबी शादी पंजाबी शादियों में भी, दुल्हन को हाथी के दांतों से बने लाल रंग के चूडा पहनाया जाता है। यह चूडा लड़की का मामा लाता है। विवाह के बाद इस चूडे को कम से कम 40 दिनों तक पहनना अनिवार्य है। कुछ पारिवारिक परंपराओं के अनुसार इसे एक साल तक पहना जाता है।
महाराष्ट्रियन दुल्हन महाराष्ट्र में, जूडे को पहने की परंपरा थोडी अलग है। दुल्हन अपने हाथों में हरे रंग की कांच की चूडियां पहनती है। चूंकि हरा रंग रचनात्मकता, नए जीवन व प्रजनन क्षमता का प्रतीक है। इन हरे रंग की चूडियों को सोने की बनी पतिया नाम चूडियों के साथ पहना जाता है
रंगों का महत्व भारतीय संस्कृति में हर रंग की चूडी को एक भिन्न शक्ति का प्रतीक माना गया है। जहां लाल रंग को ऊर्जा व समृद्धि का प्रतीक माना गया है, वहीं हरे रंग को भाग्य व प्रजनन क्षमता का प्रतीक माना गया है। पीले रंग को आनंद का, सफेद को नई शुरूआत का व नारंगी को