क्या आप जानते हैं भारत की 4 सबसे बड़ी बीफ निर्यातक कम्पनियो के मालिक कौन हैं ?
हमारे देश में बीफ (गाय एवं अन्य पशुओं के मांस) का उत्पादन एवं व्यापार काफी अरसे से होता आ रहा है। बीफ भारतवासियों के एक बड़े हिस्से के भोज्य सामग्री में शामिल रहा है। बीफ उत्पादन एवं उससे जुड़े हुए उद्योगों में हमारे देश की अच्छी खासी आबादी, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक हिन्दू हैं, को रोजगार मिला हुआ है। यूपीए की मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार को काफी प्रोत्साहित किया गया, जिसे ‘गुलाबी क्रान्ति’ (Pink Revolution) के रूप में प्रचारित भी किया गया। फलस्वरूप, बीफ के निर्यात में भारत विश्व में दूसरे नम्बर (पहले नम्बर पर ब्राजील) पर आ गया। इसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद्, आर.एस.एस. एवं हिन्दुत्व की अन्य ताकतों ने मनमोहन सरकार को निशाने पर लेना शुरू किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार गोहत्या को बढ़ावा दे रही है। नरेन्द्र मोदी ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मनमोहन सरकार की ‘गुलाबी क्रान्ति’ और बीफ निर्यात का विरोध किया।
लेकिन जब मई 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने केन्द्र की सत्ता संभाली तो उनके तेवर बदल गए। मोदी सरकार ने भी बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार पर काफी जोर दिया। इसने अपने पहले बजट में नये बूचड़खाने बनाने एवं पुरानों के आधुनिकीकरण करने के लिए 15 करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का प्रावधान किया। नजीजतन, इस सरकार के मात्र एक साल के कार्यकाल (2014-15) के दौरान भारत ने बीफ निर्यात में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया और वह नम्बर वन हो गया। हाल में जारी की गई अमेरिकी कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2015 में कुल 24 लाख टन बीफ का निर्यात किया (जो वैश्विक बीफ निर्यात का 58.7 प्रतिशत होता है), जबकि ब्राजील ने केवल 20 लाख टन का।
पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश की 6 सबसे बड़ी बीफ निर्यातक कम्पनियों में से 4 के मालिक ब्राह्मण हैं। इन कम्पनियों के नाम एवं पते इस प्रकार हैं:
(1) अल-कबीर एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-सतीश एवं अतुल सभरवाल, 92, जॉली मेकर्स, मुम्बई-400021;
(2) अरबियन एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-सुनील कपूर, रूजन मेन्शन्स, मुम्बई-400001;
(3) एम. के. आर. फ्रोजेन फूड एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेड
मालिक-मदन एबॉट, एम. जी. रोड, जनपथ, नई दिल्ली-110001 और
(4) पी. एम. एल. इण्डस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड,
मालिक-ए. एस. बिन्द्रा, एस. सी. ओ. 62-63, सेक्टर-34, चण्डीगढ़-160022।
ज्ञातव्य है कि ब्राह्मणों के मालिकाने में कार्यरत मुस्लिम नामों वाली इन बीफ कम्पनियों को गोवध कराने एवं गोमांस का निर्यात करने में भी महारत है। सवाल उठता है कि क्या हिन्दुत्व ताकतें और मोदी सरकार इन कम्पनियों पर कार्रवाई करने की हिम्मत रखती हैं?
हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद गाय को संरक्षित और गोमांस को प्रतिबन्धित करने की मांग जोर-शोर से उठने लगी है। एक ओर महाराष्ट्र, हरियाणा एवं भाजपा शासित कुछ अन्य राज्यों की सरकारों ने गोहत्या प्रतिबन्ध को कड़ाई से लागू करना शुरू कर दिया है
मोदी सरकार एक और चारित्रिक दोहरेपन की शिकार है। एक ओर यह बीफ के उत्पादन एवं व्यापार को नियन्त्रित करने के लिए एक नये केन्द्रीय कानून बनाने की बात कर रही है और दूसरी ओर बीफ मिश्रित तरह-तरह के खाद्य पदार्थों को बनाने और बेचने वाली केएफसी, मेकडोनाल्ड, सब वे एवं डोमिनो जैसी विदेशी कम्पनियों को धड़ल्ले से लाइसेन्स दे रही है। ये कम्पनियां हर रोज लाखों जानवरों का वध कराती हैं और अपने भारतीय ग्राहकों (जिनमें ज्यादातर हिन्दू होते हैं) को लजीज बीफ व्यंजन परोस कर करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाती हैं।
बूचड़खाना लगाने पर छूट क्यों?
मांस के इस व्यापार से भारत के पशुधन की क्या स्थिति हो गयी है, सरकारें इसकी अनदेखी करती रहीं हैं। दिल को दहला देने वाला एक तथ्य यह है कि आजादी के समय भारत में गोवंश (गाय, बछड़े-बछड़े, बैल और सांड) की जनसंख्या कुल मिलाकर 1 अरब 21 करोड़ के आस-पास थी। तब भारत की जनसंख्या 35 करोड़ बतायी जाती थी। अब हालत उलट गए हैं। भारत की जनसंख्या 1 अरब 21 करोड़ को पार कर गयी है और गोवंश बचा है सिर्फ 10 करोड़ के लगभग।
मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है। पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा अभी दिखाई नहीं देता।
यहीं एक गंभीर सवाल खड़ा होता है। मानवीय जनसंख्या के अनुपात में गोवंश की जनसंख्या क्यों नहीं बढ़ी? और घटी भी तो इतनी तेजी से क्यों घटी? अगर मांस के नाम पर गोमांस का व्यापार नहीं हो रहा है तो क्या भारत में गोमांस की इतनी ज्यादा खपत है? फिर मांस की आड़ में गोमांस के निर्यात की अनदेखी क्यों की गयी और क्यों की जा रही है?
भारत के 29 में से 26 राज्यों में गोवध बंदी कानून लागू है। कुछ राज्यों में तो हर प्रकार और किसी भी आयु के गोवंश के वध पर न केवल पूर्ण प्रतिवंध है बल्कि उसे गंभीर और गैरजमानती अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है। बड़ी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में आजादी के पहले से ही गोवध बंदी लागू है। आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में कहीं सभी प्रकार के पशुओं के वध की अनुमति है तो कहीं आयु के आधार पर कुछ शर्तों के साथ गोवध की भी अनुमति है।
पर बड़ी बात यह है कि पूरे देश में मांस के उत्पादन पर रोक नहीं है। यहां तक कि मांस के उत्पादकों को भारत के आयकर अधिनियम की धारा 80-आई.वी.जेड(इलेवन-ए) के तहत आयकर में छूट प्राप्त है। मांस के परिवहन पर दी जाने वाली 23 प्रतिशत की छूट अगर पिछली सरकार ने समाप्त भी कर दी, तो भी मास उत्पादन और कत्लखाने की स्थापना में दी जाने वाली 13 प्रकार की छूट ज्यों की त्यों है। मांस के कारखाने में लगने वाले प्री-कूलिंग सिस्टम में 50 प्रतिशत, हीट ट्रीटमेंट प्लांट में 50 प्रतिशत, कोल्ड स्टोरेज में 100 प्रतिशत, पैकिंग में 30 प्रतिशत, इससे जुड़े साहित्य के प्रकाशन पर 40 प्रतिशत, कंसल्टेशन फीस में 50 प्रतिशत, कत्लखाने के आधुनिकीकरण पर 50 प्रतिशत, क र्मचारियों के प्रशिक्षण पर 50 प्रतिशत छूट दिए जाने के प्रावधान हैं।
अन्य कई मदों में भी कर में छूट या अनुदान दिया जाता है। इसका तर्क यह कि अवैध कत्लखानों पर रोक लगे, गैरकानूनी तरीके से पशुओं का कत्ल न हो, आधुनिक तकनीकी से पशुओं की कम से कम प्रताड़ना कर अधिक मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाला मांस प्राप्त किया जा सके। जो अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप हो और निर्यात के लिए उपयुक्त हो। इसके लिए देश में 3616 बूचड़खाने हैं। इनमें से 38 अत्याधुनिक या कहें यांत्रिक कत्लखाने हैं। इससे अलावा 40 हजार से ज्यादा अवैध कत्लखाने हैं।
इस सबके बाद सबसे चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी है कि नया कत्लखाना स्थापित करने पर देश के बाहर से मशीनरी और कल-पुर्जे आयात करने पर इम्पोर्ट ड्यूटी (आयात शुल्क) 10 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया। यह काम इसी सरकार के कार्यकाल में ही हुआ है। सन्देश साफ है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को मांस के व्यापार में लाभ दिखाई देता है। उसकी आड़ में गोमांस का निर्यात हो या पशुओं का अवैध कटान हो तो यह उसकी जिम्मेदारी नहीं। वह तो गृह मंत्रालय का काम है।
गृह मंत्रालय बांग्लादेश सीमा पर गायों की अवैध तस्करी रोकने में पूरी ताकत झोंक रहा है। इन दिनों बांग्लादेश सीमा से पशुओं की तस्करी लगभग रुक-सी गई है। इसका बांग्लादेश के गोमांस और चमड़ा व्यापार पर खासा असर पड़ा है। मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है। पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा अभी दिखाई नहीं देता।
व्हाट्सएप्प पर अनिरुद्ध अनुज की पोस्ट से साभार