नई दिल्ली, बारह सूत्री मांगों को लेकर 10 ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत देशव्यापी हड़ताल का असर ट्रांस्पोर्ट, मैन्युफैक्चरिंग, बैकिंग समेत तमाम सेवाओं पर दिखा। अर्थव्यवस्था को इस हड़ताल से कुल 16000-18000 करोड़ रुपए का नुकसान होने की आशंका है।उत्तर भारत में हड़ताल का खास असर देखने को मिला। मुंबई, चेन्नई में भी असर देखने को मिला। प्रदर्शनों को काबू में रखने के लिए कई जगह कर्मचारियों की गिरफ्तारी हुई।
उद्योग संगठन की ओर से लगाए गए अनुमान के मुताबिक देशभर में हड़ताल से तमाम सेवाएं प्रभावित हुईं जिसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को 16 से 18 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। इसके अलावा देश के अलग अलग हिस्सों में जनसाधारण का जीवन भी इस हड़ताल से प्रभावित हुआ।रेलवे की यूनियनें हड़ताल में शामिल नहीं हुईं। इससे ट्रेनों का आवागमन सामान्य रहा। हड़ताल का आह्वान सीटू, इंटक, एटक जैसे संगठनों ने सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों, महंगाई तथा रक्षा व रेलवे में एफडीआइ आदि के विरोध में किया था।
हड़ताल का व्यापक असर केरल मे था, जहां वाम सरकार है। वहां सड़क परिवहन व्यवस्था ठप होने से लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में मिलाजुला असर रहा।
बिहार में ऑटो, बसें व रिक्शा न चलने तथा बैंक बंद रहने से जनजीवन प्रभावित हुआ। पंजाब और हरियाणा में भी परिवहन व बैंक सेवाओं पर कुछ असर देखने में आया। पश्चिम बंगाल, हरियाणा, झारखंड समेत कई राज्यों में प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में लिया। यूनियनों का दावा है कि रिजर्व बैंक में 19 हजार करोड़ रुपये के क्लियरिग कार्य प्रभावित हुए।
महाराष्ट्र में डब्ल्यूसीएल में कामकाज क्षीण रहा। सीसीएल पर आंशिक प्रभाव पड़ा। उद्योग मंडल एसोचैम ने एक दिनी हड़ताल से अर्थव्यवस्था को 16000-18000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान जाहिर किया है।
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) ने हड़ताल को कामयाब बताया। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ट्वीट कर कहा कि यह विरोध हम सबके लिए है। श्रमिकों के अधिकार कोई दान की चीज नहीं हैं। उन्होंने असंगठित श्रमिकों को कम से कम 18 हजार रुपये वेतन (लगभग 692 रुपये दैनिक) की मांग दोहराई। उन्होंने सवाल किया कि आखिर बोनस, भविष्य निधि तथा ग्रैच्युटी पर सीमाबंदी क्यों है?
एसोचैम के मुताबिक तमाम सरकारी और निजी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों में उत्पादन का कार्य प्रभावित हुआ। साथ ही तैयार माल के ट्रांस्पोर्ट में आई रुकावट इस नुकसान को और बढ़ा सकती है। एसोचैम के सेकेट्ररी जनरल डी एस रावत ने कहा कि ट्रेड, ट्रास्पोर्ट और होटल देश की जीडीपी में बड़ा योगदान रखते हैं। साथ ही बैकिंग और वित्तीय सेवाएं देश की जीडीपी में अहम योगदान रखते हैं। ये सभी सेक्टर्स इस हड़ताल से प्रभावित हुए हैं। रावत के मुताबिक सरकार और ट्रेड यूनियन को बातचीत कर कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए। यही इस समस्या का सबसे बेहतर समाधान है। रावत के मुताबिक इंडस्ट्री तर्कसंगत मजदूरी और कर्मचारियों के बेहतर जीवन स्तर के खिलाफ नहीं है। लेकिन न्यूनतम मजदूरी का तर्कसंगत होना जरूरी है। साथ ही इन सभी चीजों के कारण अर्थव्यव्यवस्था को इतना नुकसान नहीं होना चाहिए।