गोरखपुर, कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी करार दिये गये पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश के बाद शुक्रवार शाम रिहा कर दिया गया।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बीस साल की सजा काटने के बाद उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में अमरमणि और मधुमणि को 25-25 लाख रुपये के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “ दंपति वर्तमान में बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं। जेल में सजा काटने के दौरान उनके अच्छे आचरण को ध्यान में रखते हुए दंपति को रिहा करने का आदेश जेल प्रशासन और सुधार विभाग ने गुरुवार को जारी किया था।”
गौरतलब है कि कवयित्री मधुमिता शुक्ला की नौ मई 2003 को उनके लखनऊ स्थित पेपर मिल कॉलोनी स्थित आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के समय मधुमिता सात महीने की गर्भवती थीं। शूटर संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि भी शामिल थे। उनकी पत्नी मधुमणि और भतीजे रोहित मणि त्रिपाठी को हाई-प्रोफाइल हत्या मामले में आरोपी बनाया गया था।
घटना के समय अमरमणि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में मंत्री थे। सूत्रों ने कहा, “ शुरुआत में सरकार ने मामले की जांच सीबीसीआईडी की अपराध शाखा को सौंपी थी जबकि बाद में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया गया।”
इस बीच मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर मामले को उत्तर प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने का अनुरोध किया था। निधि की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में मामले को उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया था जहां देहरादून की एक अदालत ने 24 अक्टूबर 2007 को सभी पांच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अमरमणि ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी सजा बरकरार रखी गई।
सूत्रों ने बताया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ऐसे कैदियों की रिहाई पर विचार करने की सलाह दी थी, जिन्होंने जेल में अच्छा व्यवहार किया हो। उन्होंने कहा, “ इसके बाद अमरमणि ने भी अपनी रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसके बाद शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को इस साल 10 फरवरी को उन्हें रिहा करने का निर्देश दिया।”
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अमरमणि की उम्र 66 साल है और उन्होंने 20 साल जेल में काटे हैं। उनके अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें रिहा किया जाना चाहिए अगर वह किसी अन्य मामले में शामिल नहीं हैं।