नयी दिल्ली, केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ ने मधुमेह रोधी गुणों से भरपूर देश भर से जामुन की साठ उत्कृष्ट किस्मों का संग्रह किया है जो अब फलने भी लगे हैं।
संस्थान ने देश के अलग-अलग हिस्सों से जामुन की बेहतरीन किस्मों का संग्रह किया है जो न सिर्फ गूदों से भरपूर हैं बल्कि ये मीठे है, कम कसैले हैं और इनके बीज बहुत छोटे हैं। साठ प्रकार के जामुन का देश भर से चयन किया गया है जिनमें से 38 अब फलने भी लगे हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र , गुजरात , पश्चिम बंगाल , बिहार , हरियाणा , छत्तीसगढ और तमिलनाडु से जामुन के किस्मों को लाया गया है। जामुन की अधिकांश किस्में मधुमेह रोधी गुणों से परिपूर्ण है जो बायोएक्टिव तत्वों का खजाना है।
संस्थान ने जामुन की ऐसी किस्मों का विकास किया है जो खाने में लजीज है ही इसका प्रसंस्करण भी किया जा सकता है। खाने वाली किस्मों में अच्छी मात्रा में गूदा होना जरूरी है और इसके साथ ही इसके बीज इतने नाजुक हो जिसे अंगूर के बीज की तरह चबाया भी जा सके। संस्थान ने जामुन की एक बीज रहित किस्म सीआईएसएच जामुन 42 का विकास किया है, ये अंडाकार है और फल का वजन आठ ग्राम है ।
जामुन के ताजे फल, इसके बीज और संबंधित उत्पादों की भारी मांग है। सीआईएसएच और आईटीसी जैसी कम्पनियों ने जामुन आधारित अनेक उत्पाद तैयार किये हैं। सीजन के दौरान उत्पाद तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर कच्चे माल की जरूरत होती है जिसके लिए कम्पनियों ने किसानों को प्रेरित किया है और बड़ी संख्या में जामुन के पेड़ लगाये गये हैं।
संस्थान के वैज्ञानिक ए के सिंह जामुन की नयी-नयी किस्मों के खोज में लगातार जुटे हैं जिससे एक बेहतर जीन बैंक तैयार किया गया है ।
संस्थान ने पिछले वर्षों जामुन की जामवंत किस्म का विकास किया था जिसके अध्ययन के बाद पाया गया कि इसमें प्रचुर मात्रा में मधुमेह रोधी तत्व हैं। अध्ययन में ऐसा पाया गया कि जामुन की किस्मों में भारी मात्रा में मधुमेह रोधी गुणों के अलावा उसमें बायोएक्टिव कम्पाउंड भी हैं । ऐसे गुणों वाले जामुन को ‘सुपर फल’ बनाते हैं। जामवंत का फल बड़ा होता है , इसकी टहनियां मजबूत होती है और इसका गहरे बैगनी रंग इसे बेहद आकर्षक बनाता है। इसकी विशेषताओं में एक इसका गूदा है, जो बीज की तुलना में 90 से 92 प्रतिशत तक होता है। इसमें मिठास 16.. 17 ओ बिक्स होता है। इसके एक सौ ग्राम फल में 49.88 मिलीग्राम एसोरबिक एसिड होता है। इसका फल जून के दूसरे या तिसरे सप्ताह में पक कर तैयार होता है।
मधुमेह के प्रति लोगों में बढ़ती जागरुकता और औषधीय गुणों ने जामुन को लोकप्रिय बनाया है जो शुरुआती सीजन में 200 से 400 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है। जामुन के पेड़ को पहले बेकार की जमीन या सड़क किनारे छायेदार पेड़ के लिए लगा देते थे लेकिन अब इसका आर्थिक महत्व बढ़ गया है और विदेश में भी इसकी मांग होने लगी है । प्रगतिशील किसान अब जामुन के व्यावसायिक उपयोग के लिए वैज्ञानिक तरीके से इसके बाग लगाने में दिलचस्पी लेने लगे हैं। अलीगढ़ क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसानों जामवंत जामुन के बाग लगाये हैं। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है और संस्थान से पौधों की मांग भी बढ़ी है।
संस्थान ने जामुन के पौधे तैयार करने की एक विशेष तकनीक तैयार की है जिससे उसके गुणों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा जा सके। जामुन के बेहतरीन किस्मों की खोज के लिए सर्वेक्षण भी किया जा रहा है।