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महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हमले के मामलों में नहीं मिल सकेगी अग्रिम जमानत

लखनऊ, उत्तर प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा, नशे के अवैध कारोबार, गिरोहबंद अपराधों और अन्य संगीन अपराधों के अभियुक्तों को अग्रिम जमानत देने के प्रावधान को खत्म करने से जुड़े संशोधन विधेयक तथा विरोध प्रदर्शन के नाम पर होने वाले दंगा, उपद्रव आदि में सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति के नुकसान की भरपायी से संबंधित कानूनों में संशोधन के विधेयक शुक्रवार को विधान मंडल के दोनों सदनों से पारित कर दिये गये। इसके साथ ही शुक्रवार को विधान मंडल के मानसून सत्र की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दी गयी।

मानसून सत्र के अंतिम दिन सदन की बैठक शुरु होने पर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) और रालोद के सदस्यों ने मंहगाई सहित अन्य मुद्दे उठाते हुए सदन की बैठक का बहिष्कार कर वाकआउट कर किया। इसके बाद विधान सभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सदन की कार्यवाही जारी रखते हुए सभी प्रश्नों काे उत्तरित मानने की घोषणा की। इसके बाद महाना ने उन्हीं सदस्यों की याचिकाएं स्वीकार की जो सदन में मौजूद थे। इसके अलावा उन्होंने सदन में 301 की सूचना देने वाले सदस्यों की हाजिरी ली। जो सदस्य मौजूद थे उन्हीं की सूचनाओं को स्वीकार किया गया।

तदुपरांत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधान सभा में ‘उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली संशोधन विधेयक’ पारित करने का सदन से अनुरोध किया। जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। संशोधित विधेयक के अनुसार अब हड़ताल प्रदर्शन के दौरान जो सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा उसे ही प्रतिकर देना पड़ेगा। प्रदर्शन और हड़ताल के दौरान किसी की मृत्यु हो जाने पर उसके लिए मुआवजे का दावा तीन साल तक की अवधि में किया जा सकता है। अभी तक यह समयावधि मात्र तीन महीने ही थी।

उन्होंने कहा कि अभी इस प्रकरण से संबधित जो मामले न्यायालयों में लंबित है उन्हे संशोधित कानून के अनुसार निष्पादित किया जायेगा। हालांकि बसपा विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह ने इस विधेयक को विस्तृत विचार विमर्श के लिये प्रवर समिति के सुपुर्द किए जाने की मांग की। इस पर खन्ना ने कहा कि 2011 में बसपा सरकार थी, तब प्रवर समिति के गठन की आवश्यकता नहीं समझी गयी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द किये जाने की फिलहाल कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद सदन ने यह विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिया।