महिलाओं को होने वाली फाइब्रॉइड या रसौली की समस्या की कोई निश्चित उम्र नहीं होती, लेकिन 30 से 50 वर्ष की उम्र में इसके होने का खतरा अधिक रहता है। जिन महिलाओं का वजन अधिक होता है उनमें एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जो कई बार फ्रॉइब्रॉइड होने का कारण बनता है। वैसे इसके होने के सही कारणों का पता आज तक नहीं चल पाया है। महिलाओं की ओवरी या अंडाशय में बनने वाले हॉर्मोन एस्ट्रोजन को फाइब्रॉइड या रसौली होने प्रमुख कारक माना जाता है। 16-50 वर्ष की आयु में इसके होने की आशंका अधिक होती है, क्योंकि यह प्रजनन की आयु मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि एस्ट्रोजन का स्तर बढने से रसौली का आकार भी बढ़ जाता है जबकि मेनोपॉज की अवस्था में पहुंचने पर महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है और रसौली का आकार भी कम हो जाता है।
फाइब्रॉइड के आकार में भी अंतर पाया जाता है, यह मटर के दाने से लेकर खरबूजे के आकार जितना भी बड़ा हो सकता है। असामान्य स्थिति में इसका आकार और भी बड़ा हो सकता है। चूंकि, यह समस्या गर्भाशय के आस-पास के हिस्से में अधिक फैलती है, इसलिए इसकी वजह से इनफर्टिलिटी या बांझपन भी हो सकता है। गर्भाशय में होने वाला फाइब्रॉयड क्या होता है महिलाओं के गर्भाशय में फाइब्रॉइड गांठों के रूप में उभरती है। इसका आकार काफी छोटे से लेकर बड़े आकार का हो सकता है। गर्भाशय में होने वाले फाइब्रॉइड के कारण होने वाली परेशानियों के लक्षण स्पष्ट नजर आ सकते हैं या कई बार ऐसा भी होता है कि महिलाओं को इसके होने का पता ही नहीं चल पाता। कई बार अन्य जांचों के दौरान महिलाओं को यह पता चलता है कि उन्हें फाइब्रॉइड की भी समस्या है। 99 प्रतिशत मामलों में यह फाइब्रॉइड ट्यूमर कैंसरकारी नहीं होता। जांच में चलता है पता प्रजनन आयु में फाइब्रॉइड के होने की आशंका अधिक होती है और अधिक उम्र में मां बनना भी इसका कारण हो सकता है। इसके होने के प्रमुख कारण में एस्ट्रोजन हॉर्मोन शामिल है, जिसका निर्माण अंडाशय में होता है और यह हॉर्मोन हड्डियों को ताकत प्रदान करने का भी काम करता है।
जो महिलाएं मां नहीं बन पाई हैं उनमें भी फाइब्रॉइड होने का खतरा अधिक रहता है। इसका पता अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और एमआरआई के जरिए लगाया जाता है। क्या होते हैं लक्षण फाइब्रॉइड के कारण महिलाओं को मासिक चक्र संबंधी परेशानी पाई जाती है, जैसे अधिक मात्रा में रक्तस्राव होना, इसकी अवधि लंबी होना। इस प्रकार की परेशानी एनीमिया का कारण भी बन सकती है। जिन महिलाओं को फाइब्रॉइड की शिकायत होती है उन्हें पेडू में दबाव महसूस होता है, पेट, कमर या पीठ में दर्द की समस्या हो सकती है। फाइब्रॉइड के कारण गर्भ धारण करने में या गर्भावस्था के दौरान परेशानी हो सकती है, जैसे समय पूर्व प्रसव होना, गर्भपात। फाइब्रॉइड के बावजूद कई महिलाओं को दर्द महसूस नहीं होता। साथ ही ये लक्षण भी नजर आ सकते हैं- कुछ भी भारी उठा लेने के बाद रक्तस्राव होने लगना। यौन संबंधों के दौरान दर्द महसूस होना।
बार-बार मूत्रत्याग की इच्छा होना। कब्जियत की शिकायत होना। यूट्रीन फाइब्रॉइड एंबलाइजेशन से उपचार आसान फाइब्रॉइड की समस्या को दूर करने के लिए दवाएं, सर्जरी लैप्रोस्कोपी की मदद ली जाती है। कई बार रोगी को हिस्टरेक्टमी करवाने की सलाह भी दी जाती है, लेकिन यूट्रीन फाइब्रॉइड एंबलाइजेशन जैसी तकनीक के आ जाने से अब हिस्टरेक्टमी की जरूरत नहीं होती। यह सर्जरी की आधुनिक तकनीक है, जिसमें बहुत ही छोटा-सा छेद करके, उसके जरिए गर्भाशय के फाइब्रॉइड का उपचार किया जाता है। यह प्रक्रिया आसान होती है, इसमें गर्भाशय को निकालने की आवश्यकता नहीं होती और केवल एक दिन में ही रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। उपचार के बाद महिलाएं 1 से 3 दिन के बाद रोजमर्रा के सामान्य काम कर सकती हैं। इस प्रक्रिया में एक बार में ही सारे फाइब्रॉयड ट्यूमर निकाल लिए जाते हैं। ऐसे काम करती है यह तकनीक यूट्रीन फाइब्रॉयड एंबलाइजेशन में त्वचा पर बहुत ही छोटा-सा छेद किया जाता है और पेट के निचले हिस्से से नली डाली जाती है, जिससे एंजियोग्राफी की जाती है। एंजियोग्राफी की मदद से गर्भाशय नली का पता लगाया जाता है और उसके जरिए दवा की अत्यंत कम मात्रा इंजेक्ट की जाती है, जो फाइब्रॉइड तक पहुंचती है। इस प्रक्रिया के बाद रक्तस्राव के कारण होने वाले दर्द में 5-6 घंटों में ही राहत मिल जाती है और रक्तस्राव तत्काल बंद हो जाता है।