नई दिल्ली, केरल के प्रख्यात सबरीमाला मंदिर में प्रवेश संबंधी यंग लायर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में केरल सरकार से कहा कि इस मामले को लेकर नियम व कानून की बात करें और कोई भावनात्मक दलील न दें। अगर हिंदू धर्म में इस बात का उल्लेख है कि किसी को भगवान के घर अर्थात मंदिर में प्रवेश से रोका जा सकता है तो वह उस कानून व ग्रंथ की जानकारी अदालत को दे। यहां पर तर्क सुना जाएगा, भावनात्मक अपील नहीं। यह मंदिर की व्यवस्था तो कही जा सकती है, मगर कानून नहीं। कानून के अनुसार महिला और पुरुष समान हैं और दोनों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है।
सुप्रीम कोर्ट केरल के प्रख्यात सबरीमाला मंदिर में प्रवेश संबंधी यंग लायर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सभी आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का आदेश पारित करे। अभी तक मासिक धर्म वाली उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। इस आयु वर्ग से पूर्व की लड़कियों और उसके बाद की प्रौढ़ महिलाओं और वृद्धाओं के प्रवेश पर सबरीमाला मंदिर में कोई रोक नहीं है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होगी।
मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा है कि सबरीमाला मे महिलाओं का प्रवेश कब बंद हुआ? इसके पीछे क्या इतिहास है? कोर्ट इस मामले मे ये देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वंत्रतंता के मामले में से रोक कहां तक ठीक है। कोर्ट दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है।मंदिर एक धार्मिक घटना है और इसे तय पैमाने में होना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करेगा कि क्या 10 साल से 50 साल के बीच की उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में पूरी तरह बैन लगाया जा सकता है जबकि ऐसा कोई महिला और पुरुष के बीच भेदभाव वेद, उपनिषद या किसी शास्त्र में नहीं है।