नई दिल्ली, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संरक्षण पर रविवार को एक बार फिर जोर देते हुए कहा कि इसका एक-एक बूंद बचाया जाना चाहिए ।
श्री मोदी ने आकाशवाणी पर मन की बात कार्यक्रम में कहा कि मेरा बचपन जहाँ गुजरा, वहाँ पानी की हमेशा से किल्लत रहती थी। हम लोग बारिश के लिए तरसते थे और इसलिए पानी की एक-एक बूँद बचाना हमारे संस्कारों का हिस्सा रहा है। अब “जन भागीदारी से जल संरक्षण” इस मंत्र ने वहाँ की तस्वीर बदल दी है। पानी की एक-एक बूँद को बचाना, पानी की किसी भी प्रकार की बर्बादी को रोकना, यह हमारी जीवन शैली का एक सहज हिस्सा बन जाना चाहिए। हमारे परिवारों की ऐसी परंपरा बन जानी चाहिए, जिससे हर एक सदस्य को गर्व हो।
उन्होंने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा भारत के सांस्कृतिक जीवन में, हमारे दैनिक जीवन में, रचा बसा हुआ है। वहीं, बारिश और मानसून हमेशा से हमारे विचारों, हमारी फिलोसोसोफी और हमारी सभ्यता को आकार देते आए हैं। ऋतुसंहार और मेघदूत में महाकवि कालिदास ने वर्षा को लेकर बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। साहित्य प्रेमियों के बीच ये कवितायें आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। ऋग्वेद के पर्जन्य सुक्तम में भी वर्षा के सौन्दर्य का खूबसूरती से वर्णन है। इसी तरह, श्रीमद् भागवत में भी काव्यात्मक रूप से पृथ्वी, सूर्य और वर्षा के बीच के संबंधों को विस्तार दिया गया है।
सूर्य ने आठ महीने तक जल के रूप में पृथ्वी की संपदा का दोहन किया था, अब मानसून के मौसम में, सूर्य, इस संचित संपदा को पृथ्वी को वापिस लौटा रहा है। वाकई, मानसून और बारिश का मौसम सिर्फ खूबसूरत और सुहाना ही नहीं होता बल्कि यह पोषण देने वाला, जीवन देने वाला भी होता है। वर्षा का पानी जो हमें मिल रहा है वो हमारी भावी पीढ़ियों के लिए है, ये हमें कभी भूलना नहीं चाहिए।