देहरादून,केंद्र की मोदी सरकार को बड़ा करारा झटका देते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा को आज निरस्त कर दिया और हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया। साथ ही कोर्ट ने रावत सरकार को 29 अप्रैल को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने को कहा है। अनुच्छेद 356 के तहत 27 मार्च को की गई घोषणा के लिए केंद्र से नाराजगी जताते हुए मुख्य न्यायाधीश के. एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाना उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत है।
जब केंद्र के वकील ने यह हलफनामा देने से इनकार कर दिया कि अदालत द्वारा फैसला दिये जाने के लिए सरकार राष्ट्रपति शासन को एक सप्ताह के लिए रद्द नहीं करेगी, पीठ ने खुली अदालत में विस्तृत फैसले में इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू करने पर कड़ी टिप्पणी की। पीठ ने कहा, ‘मामले का सार यह है कि क्या केंद्र सरकार को राज्य सरकारों से छुटकारा पाने की, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार को हटाने या उखाड़ने की, अव्यवस्था फैलाने की और उस अदने से आदमी के विश्वास को नजरअंदाज करने की आजादी है जो बर्फ, गर्मी और बारिश को झेलते हुए मतदान के लिए एक सफेद पर्ची के साथ खड़ा होता है।’
उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि निलंबन हो या भंग करना हो, असर यह होता है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार गिर जाती है। यह ऐसे नागरिकों के मन में निराशा पैदा करता है जो लोकतांत्रिक प्रणाली में भाग लेते हैं। यह संघवाद की बुनियाद तथा लोकतंत्र को कमजोर भी करता है। राष्ट्रपति शासन की घोषणा को चुनौती देने वाली अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने राष्ट्रपति शासन लागू करने वाले दिन से पहले की यथास्थिति बहाल की। कांग्रेस के नौ असंतुष्ट विधायकों की सदस्यता समाप्त किये जाने को बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा कि उन्हें अयोग्य होकर दलबदल करने के ‘संवैधानिक गुनाह’ की कीमत अदा करनी होगी।
पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए जिन तथ्यों पर विचार किया गया उनका कोई आधार नहीं है। रावत सरकार की बहाली का आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि अपदस्थ मुख्यमंत्री को अनिवार्य रूप से 29 अप्रैल को विधानसभा में अपनी सरकार का बहुमत साबित करना होगा। अदालत ने कहा, ‘मौजूदा मामले में जो 18 मार्च को शुरू हुआ और दस दिन से कम समय के भीतर घोषणा की गयी जिससे ऐसे हालात बने जिसमें अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत किया गया है।’ पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा से पहले की यथास्थिति बनाई जाएगी, जिसका अर्थ हुआ कि याचिकाकर्ता (हरीश रावत) के नेतृत्व वाली सरकार बहाल होगी।
अदालत ने अपने फैसले पर स्थगन लगाने की केंद्र के वकील की मौखिक अर्जी को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, ‘उत्तराखंड में अब राष्ट्रपति शासन नहीं है। सरकार को बहाल कर दिया गया है। हमने आपसे कहा था कि हमें (फैसला लिखने के लिए) समय दीजिए। लेकिन आपने हमें आज ही फैसला सुनाने का दबाव डाला। हमें इस बात से कोई आपत्ति नहीं है कि हमारा फैसला निष्प्रभावी हो जाए। आप उच्चतम न्यायालय जाकर इस पर रोक लगवा लें।’
इस मुद्दे के खंडपीठ के सामने आने से पहले एकल न्यायाधीश ने 18 मार्च को विनियोग विधेयक के पारित होने पर उठे विवाद के बाद 28 मार्च को बहुमत साबित करने का आदेश दिया था। भाजपा और असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों का दावा था कि उक्त धन विधेयक सदन में गिर चुका है और सरकार बहुमत खो चुकी है। सदन में बहुमत साबित करने से एक दिन पहले केंद्र सरकार ने संवैधानिक व्यवस्था के चरमराने का हवाला देते हुए 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया। हरीश रावत ने खंडपीठ में राष्ट्रपति शासन को लागू करने की घोषणा को चुनौती दी थी। सुनवाई के आखिरी तीन दिन के दौरान अदालत ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के मुद्दे पर केंद्र के खिलाफ कई कड़ी टिप्पणियां कीं।
अदालत ने सोमवार को कहा था कि शक्ति परीक्षण से महज एक दिन पहले अनुच्छेद 356 के तहत घोषणा करना लोकतंत्र की जड़ों को काटने के समान है। अदालत ने इसके बाद कहा कि सरकार अव्यवस्था फैला रही है और एक निर्वाचित सरकार की अनदेखी कर रही है। इससे पहले आज उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर अब केंद्र राष्ट्रपति शासन लागू करने का अपना आदेश वापस लेता है तथा किसी और को सरकार बनाने की अनुमति देता है तो यह न्याय का उपहास होगा। उच्च न्यायालय ने यह तीखी टिप्पणी तब की जब सरकार के वकील इस मामले में फैसला सुनाए जाने तक वर्तमान स्थिति बनाए रखने के संबंध में एक हलफनामा देने में नाकाम रहे।
लगातार चौथे दिन सुनवाई जारी रखते हुए अदालत ने केंद्र को यह भी कहा कि वह अपदस्थ मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को चुनौती देने तथा सदन में शक्ति परीक्षण सुनिश्चित करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने की अनुमति दे सकती है। पीठ ने कहा ‘क्या हमें स्थगन के लिए सात अप्रैल को दिए गए उनके आवेदन पर विचार करना चाहिए? अपेक्षा थी कि फैसला सुनाए जाते तक केंद्र सरकार अनुच्छेद 356 को वापस नहीं लेगी। अगर आप 356 को वापस लेते हैं तथा किसी और को सरकार बनाने के लिए कहते हैं तो यह न्याय के उपहास के अलावा और क्या होगा।’
इससे पहले केंद्र के वकील ने कहा कि केंद्र यह आश्वासन देने की स्थिति में नहीं है कि सरकार राष्ट्रपति शासन लागू करने के अपने आदेश की वापसी को एक सप्ताह के लिए रोककर रखने पर विचार करेगी। पीठ ने सरकार के वकील को दिशानिर्देश लेने के लिए कुछ समय दिया। पीठ ने कहा, ‘अन्यथा आप हर राज्य में ऐसा कर सकते हैं। 10 से 15 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करो और फिर किसी दूसरे को शपथ लेने के लिए कह दो। गुस्से से अधिक हमें इस बात की पीड़ा है कि आप इस तरह का आचरण कर रहे हैं। सर्वोच्च प्राधिकार (भारत सरकार) इस तरह का आचरण कर रही है। आप अदालत के साथ खेल करने की सोच भी कैसे सकते हैं।’