बागपत, बागपत जिले के खपराना गांव में 2000 साल पुरानी मुद्रा (करेंसी) मिली है। माना जा रहा है कि यह करेंसी कुषाणकालीन राजा वासुदेव ने जारी की थी। तांबे के ये सिक्के मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तनों में भरे मिले। ‘शहजाद राय शोध संस्थान’ के निदेशक अमित राय जैन ने ऐतिहासिक महत्व की इस जमीन का सर्वेक्षण किया। इसकी रिपोर्ट अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI) को भेजी जाएगी
बरनावा लाक्षागृह से लगभग छह किलोमीटर दूरी पर स्थित खपराना गांव में 100 बीघा से भी अधिक परिक्षेत्र में प्राचीन टीले मौजूद हैं। इन टीलों पर प्राचीन सभ्यता के प्रमाण ऊपरी सतह पर ही बिखरे हुए पड़े हैं। शुक्रवार को शहजाद राय शोध संस्थान बड़ौत के निदेशक अमित राय जैन द्वारा इस टीले का प्रारंभिक सर्वेक्षण किया।
इस सर्वेक्षण के दौरान उन्हें यहां से खंडित मृदभांड के रूप में महिलाओं द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कर्णाभूषण, होपस्कॉच, झावा (पैर साफ करने के लिए), बच्चों के खेल-खिलौने, खाद्य सामग्री रखने वाले पात्रों के अलावा बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में ताम्र मुद्राएं भी प्राप्त हुई। ये मुद्राएं मिट्टी की एक छोटी लुटिया में मौजूद थे। इस लुटिया में दो दर्जन से अधिक सिक्के मौजूद थे। मिट्टी से बनी यह लुटिया भी ऊपरी किनारे से थोड़ी खंडित थी। मिट्टी में अधिक समय तक दबे रहने के कारण सिक्के अधिक स्पष्ट नहीं थे।
इन सिक्कों और अन्य प्राप्त पुरावशेषों को लेकर अमित राय जैन शहजाद राय शोध संस्थान बड़ौत आ पहुंचे। यहां पर प्राप्त पुरा सामग्री का गहनता से अध्ययन किया गया। उन्होंने बताया कि प्राप्त पुरा सामग्री की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर एएसआई, जिलाधिकारी को भेजी जाएगी। साथ ही वे एएसआई से मांग करेंगे कि खपराना गांव में विस्तृत रूप से फैले टीलों पर जल्द से जल्द उत्खनन कार्य कराया जाए ताकि यहां की धरती में दफन प्राचीन सभ्यता को दुनिया के सामने लाया जा सके।
इन मुद्राओं और मृदभांड के बारे में गहराई के साथ निरीक्षण किए जाने के बाद निदेशक अमित राय जैन ने बताया कि से प्राचीन सिक्के कुषाण कालीन शासक वासुदेव द्वारा 200-225 एडी (1800-2000 वर्ष) पहले अपनी विनिमय मुद्राओं के रूप में जारी किए गए थे। उन्होंने बताया कि इन मुद्राओं पर अत्यधिक रूप से ग्रीन पैटीना चढ़ा हुआ है जिस कारण अधिकांश सिक्कों पर अंकित चित्र, भाषा स्पष्ट नहीं हैं। 7-8 ग्राम वजनी सिक्का 23 मिमी का है। सिक्के के एक ओर स्वयं राजा वासुदेव खडी मुद्रा में सर पर मुकुट पहने हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ से यज्ञ वेदी में आहूति डालते हुए हैं। वहीं सिक्के के दूसरी ओर भगवान शिव डमरू व त्रिशूल के साथ अपने वाहन नंदी के साथ खडे हुए हैं।
खपराना गांव में जिस तरह की मुद्राएं प्रारंभिक सर्वेक्षण से प्राप्त हुई हैं, ठीक वैसी ही मुद्राएं बड़का गांव में भी क्रांतिकारी बाबा शाहमल सिंह मावी की शाहदत स्थली से प्राप्त हो चुकी हैं। यहां से भी मिट्टी की छोटी लुटिया में चार-पांच सिक्के प्राप्त हुए थे। यह पात्र व सिक्कें कुषाण कालीन थे। 12 से 18 ग्राम वजनी ताम्र निर्मित ये कुषाण कालीन सिक्कें लगभग 2000 वर्ष प्राचीन थे। इन सिक्कों पर जहां एक ओर स्वयं कुषाण राजाओं की छवि आदमकद मुद्रा में अंकित थी वहीं दूसरी ओर किसी देवी-देवता की आकृति बनी हुई थी।
अमित राय जैन ने बताया कि इन सिक्कों का खपराना गांव के टीलों से मिलना यह सिद्ध करता है कि खपराना गांव के उत्तरी छोर पर अवस्थित यह प्राचीन टीला युगों-युगों से यहां पर विद्यमान है और यह एक ऐसा स्थान है जहां पर हजारों वर्षों से मानव सभ्यता-बस्ती विद्यमान रही और अनेकों युगों की मानव सभ्यता यहां पर फली-फूली। यमुना-हिंडन दोआब के मध्य का इतिहास, संस्कृति, सभ्यता को जानने के लिए इस तरह के पुरास्थलों की खोज करना बेहद आवश्यक हैं।
आवश्यकता है कि शासन प्रशासन स्तर पर इन सभी पुरास्थलों का संरक्षण किया जाए, इन सभी स्थलों को संरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित करते हुए यहां पर मिट्टी भराव के लिए किए जा रहे अवैध खनन पर रोक लगाई जाए। प्रशासन की उदासीनता का पता इस बात से ही चलता है कि जब-जब भी किसी नए पुरास्थल की खोज हुई, तब-तब प्रशासन से इतिहासकारों ने मांग की कि इन स्थलों का संरक्षण व संवद्र्धन किया जाएं, लेकिन प्रशासन ने ज्यादातर इन पुरातात्विक महत्व के टीलों के ऊपर अवैध रूप से पट्टे काटते हुए आम लोगों को यहां मौजूद प्राचीन सभ्यता, संस्कृति को जमीदोज करने का लाइसेंस दिया हुआ है। समय-समय पर पट्टा धारक किसान इन प्राचीन टीलों की भूमि को समतल करने के लिए यहां की मिट्टी खनिकों को अवैध खनन के लिए देकर पैसा कमाते हैं और यहां पर मौजूद पुरा सामग्री अवैध खनन के कारण नष्ट हो जाती है।