लखनऊ, विपरीत परिस्थितियों में संवाद और समन्वय स्थापित करने की कला के महारथी भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री की यादें यूं तो लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई जिलाें में बिखरी पड़ी है मगर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से 84 वर्ष पहले उनका खास रिश्ता बन गया था जब वह अपने भाई के विवाह में सहबाला बन कर आये थे।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के 100वें जन्मदिन पर बुधवार को उत्तर प्रदेश में कई कार्यक्रम रखे गये हैं। देश में अटल बिहारी वाजपेयी को ऐसे राजनेता के तौर पर याद किया जाता है जो अपने सौम्य स्वाभाव के कारण न सिर्फ विपक्षी दलों में खासे सम्मानित थे बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हाजिर जवाबी के लिये मशहूर थे। यही अंदाज उनके व्यक्तिव की विराटता का प्रमाण था जिससे उनको किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता।
इसके बावजूद अटल का यूपी के कुछ जिलों से खास रिश्ता था। आगरा की बाह तहसील स्थित बटेश्वर उनकी मातृभूमि थी। पिता की नौकरी के नाते बचपन ग्वालियर में गुजरा। कानपुर से उन्होंने पढ़ाई की तो लखनऊ को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर से उनका रिश्ता तो बेहद खास था। वजह थी गोरखपुर में बड़े भाई प्रेम वाजपेई की ससुराल होना। इस शादी में वह 1940 में सहबाला बनकर आए थे। मां की मौत के बाद वह ग्वालियर की जगह गोरखपुर आना ही पसंद करते। और लंबे समय तक रुकते थे राजनीतिक व्यस्तता बढ़ने के साथ ही यह सिलसिला कम होता गया।
दरअसल कुंवारे अटलजी के बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की ससुराल गोरखपुर के आर्यनगर या अलीनगर स्थित माली टोला में रहने वाले स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के घर है। 84 साल पहले वह बड़े भाई की शादी में सहबाला बनकर गोरखपुर आए थे। ड्रेस थी, हॉफ पैंट और शर्ट। दीक्षित परिवार के ड्राइंग रूम में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के साथ लगी अटलजी की एक तस्वीर भी इस रिश्ते की गवाह है।
मां कृष्णा देवी की मृत्यु के बाद गर्मियों की छुट्टियों में वह गोरखपुर आना ही पसंद करते थे। दीक्षित परिवार के पास उनकी यादों का पुलिंदा है। अब न अटलजी रहे, न यादों को सुनाने वाले अधिकांश लोग। बावजूद उनसे जो सुन रखा है उसके मुताबिक उम्र में अटल जी से कुछ ही छोटे स्वर्गीय कैलाश नारायण दीक्षित (इंजीनियर) और सूर्यनारायण दीक्षित (पूर्व विभागाध्यक्ष वनस्पति शास्त्र विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ अटल ने अपने नौजवानी के तमाम दिनों को गुजारा था।
पंडित मथुरा प्रसाद की पांच बहनों शांति, रामेश्वरी, सावित्री, पुष्पा व सरोज में से रामेश्वरी उर्फ विट्टन का विवाह अटल के बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के साथ हुआ था। एक बार रिश्ता कायम होने के बाद अटल का यहां अक्सर आना जाना होता था। चूंकि दोनों दीक्षित बंधु (कैलाश नारायण व सूर्य नारायण) लगभग उनके हम उम्र थे, इसलिए उनकी इनसे खूब पटती थी। कुछ और परिचित भी आ जाते थे और महफिल जम जाती थी। जब अटल आते तब उनके एक कांग्रेसी दोस्त रमेशचंद्र दीक्षित का भी खूब आना होता था। दोनों में खूब बहस होती थी। यहां दीक्षित बंधुओं की मां श्रीमती फूलमती उनका खासा ख्याल रखती थी। वे उनसे ही कुछ अधिक अटैच हो गये। उनके आने-जाने और कुछ उनकी भाभी रामेश्वरी के बताने से दीक्षित परिवार अटलजी के शौक से वाकिफ हो चुका था। खाने में उन्हें बेसन की दो चीजें पनौछा, रसाद बेहद पसंद थीं। इसके अलावा खीर भी पसंद थी।
हाजिर जवाबी अटल जी की खूबी थी। अप्रैल 1994 में वे पंडित मथुरा प्रसाद दीक्षित के भाई के ब्रह्मभोज पर अलीनगर आये थे। आदतन बिना किसी तामझाम के आना हुआ था। रात में जब जाना हुआ तो स्वर्गीय कैलाश के पुत्र संजीव दीक्षित ने कहा कि चलिए आपको पहुंचा देते हैं । छूटते ही अटल जी ने अपनी खास स्टाइल में कहा, “हम पहुंचे हुए हैं पहुंच जायेंगे।”
ऐसा ही एक वाकया दिल्ली का भी है। अटलजी को शाम को दूध पीने की आदत थी। न मिलने पर नाराज हो सकते थे। कम मिलने पर परिहास भी कर सकते थे। वाकया उन दिनों का है जब वे दिल्ली में वीर अर्जुन से जुड़े थे। सूर्य नारायण दीक्षित वहीं पी. एच. डी. करने गये थे। 5-6 महीने वे अटलजी के साथ ही रहे। उनके मुताबिक एक बार वह लोग कहीं किसी के यहां गये थे। शाम को जिस गिलास में दूध मिला वह कुछ छोटी थी। सबेरे नाश्ते के समय पानी का जो गिलास आया, उसका आकार बड़ा था। अटलजी ने गिलास को घुमा फिरा कर गौर से देखा, फिर अपने ही अंदाज में कहा, रात कहां थी महारानी। वहां मौजूद सारे लोग आशय समझ ठठाकर हंस पड़े।