लखनऊ, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा ने भले ही सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तैयार कर प्रत्याशी उतारे हों पर उसे भी अपनों से चोट मिलने की आशंका है। प्रदेशभर में लगभग 40 से 48 ऐसी सीटें हैं जहां पर पुराने बसपाई ही उन्हें टक्कर देते नजर आएंगे। यह सब बसपा मुखिया मायावती के लिए बड़ी चुनौती भी बन सकते हैं।
बसपा में दूसरे नंबर के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अब भाजपा के टिकट पर अपनी पुरानी सीट पडरौना से मैदान में हैं। पडरौना में मौर्य बसपा के प्रत्याशी के लिए बड़ी चुनौती हैं। हालांकि बसपा ने वहां बहुत पहले ही उम्मीदवार उतारकर तैयारी का पूरा मौका दिया है। वहीं बृजेश पाठक लखनऊ मध्य से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा का टिकट मिलने की अटकलों के बीच चिल्लूपार से मौजूदा बसपा विधायक राजेश त्रिपाठी भाजपा से उम्मीदवार हैं। दूसरी तरफ बाहुबली अंसारी परिवार के बसपा में आने के बाद मायावती ने तीन प्रत्याशियों का टिकट काट दिया है। जिनमें से दो निर्दलीय मैदान में उतर रहे हैं। वहीं सपा छोड़ बसपा में आए अम्बिका चौधरी और नारद राय भी अपनी सीट से मैदान में हैं जहां से बसपा ने पहले ही प्रत्याशी घोषित कर दिया था। मायावती को यहां भी विरोध झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा, दर्जन भर ऐसे विधायक हैं जो दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं और मैदान में हैं। इनमें गाजियाबाद और फतेहपुर के प्रत्याशी भी शामिल हैं। इन सीटों पर पार्टी को नए प्रत्याशी के साथ मैदान में उतरना पड़ा है और तैयारी का मौका भी नहीं मिल पाया है। राजनीतिक पण्डितों की माने तो ऐन वक्त पर पार्टी छोड़कर जाने से कैडर वोट पर असर पड़ता है। मुख्य वोट गुमराह होता है। इसलिए यह बड़ी चुनौती होती है। काम के वक्त दूसरे लोग होते हैं और चुनाव के समय दूसरे को मौका देना पड़ता है। इस वजह से पुराने लोग जो जनता के बीच काम करते आ रहे हैं अपने व्यवहार की वजह से वोट बैंक को प्रभावित करते हैं।