हापुड़, भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आईआरसीटीसी) ‘रेल नीर’ के नौ नये संयंत्र बना रहा है और इनका परिचालन शुरू होने के साथ रेलवे बोतलबंद पेयजल के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगी। रेल नीर वर्तमान में भारत के रेलवे परिसरों में पेयजल की कुल मांग का केवल का केवल 45-50 फीसदी ही पूरा कर पाता है लेकिन देश भर में नौ नये संयंत्रों के शुरू होने के बाद उत्पादन लगभग दोगुना होने की संभावना है।
‘रेल नीर’ के ग्रुप जनरल मैनेजर सियाराम ने उत्तर प्रदेश के हापुड़ रेल नीर संयत्र में पत्रकारों से कहा कि वर्तमान में देशभर में रेल नीर के 10 संयंत्र कार्य कर रहे हैं जिनसे रेलवे परिसरों में ‘रेल नीर’ की कुल मांग का 45-50 फीसदी ही पूरा हो पाता है। इस कारण से रेलवे को बाजार के अन्य ब्रांड का पानी खरीदना पड़ता है जिनकी गुणवत्ता की गारंटी नहीं होती है।
देश में नौ नये संयंत्रों के संचालन के साथ ही आईआरसीटीसी ‘रेल नीर’ की मांग पूरी करने में आत्मनिर्भर हो जाएगा।” उन्होंने कहा कि आईआरसीटीसी वर्तमान में संचालित 10 संयत्रों के माध्यम से प्रतिदिन करीब 11 लाख लीटर ‘रेल नीर’ की आपूर्ति रेलवे को कर पाता है जबकि प्रतिदिन इसकी मांग करीब 19 लाख लीटर की है। नौ नये संयंत्र इस कमी को पूरा कर लेंगे।
आईआरसीटीसी के संयंत्र इस समय दिल्ली के नांगलोई, पटना के दानापुर, चेन्नई के पालूर, मुंबई के अम्बरनाथ, उत्तर प्रदेश के अमेठी, तिरुवनंतपुरम के पारासल्ला, छत्तीसगढ़ के बिलापुर, उत्तर प्रदेश के हापुड़, अहमदाबाद के साणंद और भोपाल के मंडीदीप में कार्यरत हैं। हापुड़, साणंद और मंडीदीप के संयंत्र इसी वर्ष अप्रैल में शुरू हुए हैं।
महाराष्ट्र के नागपुर, पश्चिम बंगाल के हावड़ा के संक्राईल, गुवाहाटी के जागी रोड, जबलपुर, भुसावल और ऊना में छह नये संयंत्रों का निर्माण लगभग पूरी होने की प्रक्रिया में है और अगले वर्ष मार्च तक इनके शुरू हो जाने की पूरी संभावना है। इसके अलावा विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम और भुवनेश्वर में भी तीन नये संयंत्र स्थापित किये जा रहे हैं। इन सभी नये संयंत्रों के संचालन के साथ ही आईआरसीटीसी भारत के रेलवे परिसरों में ‘रेल नीर’ की मांग पूरी करने में सक्षम हो जाएगा।
गौरतलब है कि ‘रेल नीर’ बनाने के लिए पानी को शुद्धता की आठ प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है। एक्टिवेटेड कार्बन के माध्यम से जल के दूर्गंध को दूर किया जाता है, सॉफ्टनर से जल की कठोरता हटाई जाती है, अल्ट्रा फिल्ट्रेशन मेम्बरेन्स प्रक्रिया से कार्बनिक अशुद्धियां दूर की जाती है, रिवर्स ऑसमोसिस (आरओ) मेम्बरेन्स के माध्यम से खनिज लवण, वायरस और बैक्टेरिया समेत सभी अवशिष्ट प्रदूषकों को हटाया जाता है, कैल्साइट मार्बल मीडिया से जल के पीएच (हाइड्रोजन ऑयन कंसन्ट्रेशन) को संतुलित किया जाता है। टू माइक्रोन फिल्टर्स से बचे हुये अन्य प्रदूषकों को दूर किया जाता है।
अल्ट्रा वायलेट (यूवी) फिल्टर्स के जरिये बचे हुए वायरस और बैक्टेरिया को नष्ट किया जाता है। शुद्धता की प्रक्रिया के अंतिम चरण में ओजोनेशन के माध्यम से जल की पर्याप्त शेल्फ-लाइफ सुनिश्चित की जाती है। इन आठ प्रक्रियाओं से पहले भी जल के क्लोरीनेशन के तहत पानी में क्लोरीन मिलाकर उसे सात-आठ घंटों के लिए छोड़ दिया जाता है।
श्री सियाराम के अनुसार बोतलबंद पेयजल का शायद ही कोई अन्य ब्रांड इतनी निष्ठापूर्वक आठ चरण वाली शोधन प्रक्रिया का पालन करता है जितना रेल नीर। उन्होंने माना कि आने वाले दिनों में रेलवे की मांग पूरी करने के बाद रेल नीर को बाजार में भी उतारा जा सकता है।
‘रेल नीर’ को उसकी गुणवत्ता के लिए कई तरह के पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। अमेरिका के बर्कशायर मीडिया एलएलसी ने ‘रेल
नीर’ को ‘इंडियाज बेस्ट ब्रांड ऑफ द ईयर अवार्ड 2018’ से सम्मानित कर चुका है। इसके अलावा वर्ष 2017 में कंज्यूमर वॉयस मैगजीन ने भी ‘रेल नीर’ को पेयजल की श्रेणी में शीर्ष प्रदर्शन करने वाले ब्रांड के रूप में मान्यता दी। ‘रेल नीर’ को वर्ष 2016 में भारत का सबसे भरोसेमंद ब्रांड का पुरस्कार दिया गया था।