भारत के कई इलाके अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी लाने के लिए महिलाओं को 4 से 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। ऐसी ही महिलाओं और लड़कियों का दर्द समझा अमेरिका के न्यूयॉर्क की रहने वाली सोशल एक्टिविस्ट सिंथिया कोएनिग ने। उन्होंने एक ऐसा ‘वाटर व्हील’ तैयार किया, जो कई किलोमीटर दूर से पानी लाने वालों के लिए नई उम्मीद बन गई है।
वाटर व्हील बनाने के लिए सिंथिया को एक लाख यूएस डॉलर (63 लाख रुपए से ज्यादा) का ग्रैंड चैलेंजेस कनाडा अवॉर्ड मिला था। उन्होंने इसी पैसे से सोशल एंटरप्राइजेज ‘वेलो’ की स्थापना की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘रेड इंटरनेशनल’ (मार्केटिंग एजेंसी) के साथ पार्टनरशिप में ‘वेलो’ राजस्थान और बिहार में काम कर रही है। कंपनी के राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में यूनिट्स हैं। सिंथिया ने बताया कि वे ग्लोबल लेवल पर क्लीन वाटर को लेकर अवेयरनेस लाना चाहती हैं। इस तरह के आइडिया इंडिया को बेटर बना सकते हैं।
इस इंडियन ने 4 साल में उगाए 48 जंगल
एक ओर जहां लोग पेड़ों को काटते जा रहे हैं, वहीं उत्तराखंड के काशीपुर के रहने वाले शुभेंदु शर्मा ने 4 साल में 48 जंगल लगाने का कारनामा किया है। इंडस्ट्रियल इंजीनियर की जॉब छोड़ने के बाद शुभेंदु ने भारत के अलग-अलग हिस्सों में इन जंगलों को उगाने का काम किया है। इतना ही नहीं, अपने घर के बैकयार्ड में भी इन्होंने एक जंगल लगाया है।
डिजिटल इंडिया का सॉलिड उदाहरण है केरल का ये गांव
केरल का एरावीपेरुर ग्राम पंचायत के लोगों को मुफ्त में वाई-फाई की सुविधा मिलती है। इतना ही नहीं, इस गांव के सभी लोगों के रिकॉर्ड्स, जानकारी और ट्रांजिक्शन फुली डिजिटल है। इसके अलावा इस ग्राम पंचायत में प्लास्टिक श्रेडिंग यूनिट भी है, जिसके जरिए कटे हुए प्लास्टिक को टार में मिलाकर अपनी सड़कों को मजबूत बनाते हैं।
दो भाइयों ने बांस के सहारे बना दी वाइंडमिल
असम के ग्रामीण इलाकों में खेतीबारी के लिए किसान इलेक्ट्रिक और डीजल पम्प का उपयोग करते थे। इस पर काफी खर्च होता था। ऐसे में दारंग जिले के दो भाइयों मोहम्मद मेहतर हुसैन और मुश्ताक अहमद के दिमाग में वाइंडमिल का आइडिया आया। इन लोगों ने बांस, टिन और पुराने टायर के सहारे पतंग की तरह बनाया और हैंडपम्प से जोड़ दिया। ऐसे में हवा के चलते ही हैंडपम्प चलने लग जाता। इसको बनाने में सिर्फ 4500 रुपए का खर्च आता है, वहीं कमर्शियल वाइंडमिल को बनाने में 60 हजार रुपए तक का खर्च आता है।
असम के ग्रामीण इलाकों में खेतीबारी के लिए किसान इलेक्ट्रिक और डीजल पम्प का उपयोग करते थे। इस पर काफी खर्च होता था। ऐसे में दारंग जिले के दो भाइयों मोहम्मद मेहतर हुसैन और मुश्ताक अहमद के दिमाग में वाइंडमिल का आइडिया आया। इन लोगों ने बांस, टिन और पुराने टायर के सहारे पतंग की तरह बनाया और हैंडपम्प से जोड़ दिया। ऐसे में हवा के चलते ही हैंडपम्प चलने लग जाता। इसको बनाने में सिर्फ 4500 रुपए का खर्च आता है, वहीं कमर्शियल वाइंडमिल को बनाने में 60 हजार रुपए तक का खर्च आता है।
ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी पैड
भारत के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं सैनिटी पैड्स के बारे में पता नहीं है। साथ ही इस तरह के पैड्स जल्दी मिलते भी नहीं है और मिलते भी हैं तो काफी महंगे होते हैं। ऐसे में तमिलनाडु के रहने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथम ने एक ऐसी मशीन बनाई है, जिसके जरिए सस्ते में सैनिटरी पैड बनाए जा सकते हैं। मार्केट में मिलने वाले पैड की तुलना में इस मशीन द्वारा बनाई गई सैनिटरी पैड तीन गुनी तक सस्ती होती है। मुरुगनाथम का कहना है कि अगर कोई महिला या लड़की इस मशीन को चलाना सीख जाए तो वह अपने लिए खुद भी इस पैड को बना सकती है।
10 रुपए में कार्टन से बनाया स्कूल बैग
ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में न तो बच्चों के पास बैग होते हैं और न ही डेस्क होते हैं। इससे उन्हें पढ़ने में काफी दिक्कत आती है। ऐसे में एक एनजीओ आरंभ ने एक शानदार पहल की है। इस एनजीओ ने ग्रामीण इलाकों के बच्चों को ध्यान में रखते हुए कार्टन का बैग बनाया हैं, जो कि डेस्क का काम भी करती है। यह काफी मजबूत भी हैं। इसकी कीमत महज 10 रुपए है।