नयी दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी के साहित्य कला परिषद की ओर से आयोजित चार दिवसीय भरतमुनि रंग उत्सव का समापन गुरुवार को ‘तृष्णा’ मरणोपरांत’ और ‘दिग्दर्शक’ नाटकों की प्रस्तुति से हुआ।
साहित्य कला परिषद की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, समापन के दिन शाम की शुरुआत ‘तृष्णा’ नाटक से हुयी, जिसे संपा मंडल ने लिखा और निर्देशित किया। यह नाटक मीरा और माधवी की कहानियों पर आधारित है, जो विभिन्न युगों की दो महिलाओं की अधूरी इच्छाओं और संघर्षों को दर्शाता है। इस नाटक में पुनर्जन्म की अवधारणा को काव्यात्मक संवादों और प्रखर अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। मीरा की कृष्ण भक्ति और माधवी की अधूरी इच्छाओं के बीच के कर्म संबंध को बारीकी से उकेरा गया। राजस्थानी भाषा और कविता-गद्य के मेल ने दर्शकों को बांधे रखा।
दूसरा नाटक ‘मरणोपरांत’, जिसे सुरेंद्र वर्मा ने लिखा और लक्ष्मी रावत ने निर्देशित किया। इस नाटक में रिश्तों की जटिलताओं को गहराई से प्रस्तुत किया गया। यह एक ऐसी पत्नी और प्रेमिका की कहानी है, जो व्यक्ति की मृत्यु के बाद पहली बार मिलती हैं। उनकी भावनात्मक टकराहट और एक-दूसरे के प्रति उनके दृष्टिकोण ने दर्शकों को बांधे रखा।
अंतिम नाटक ‘दिग्दर्शक’, जिसे प्रियम जानी ने लिखा और सुनील चौहान ने निर्देशित किया। यह नाटक गुरु-शिष्य के रिश्ते की गहराइयों को महसूस कराता है।
इन तीन प्रमुख नाटकों ने दर्शकों के दिल एवं मन पर गहराई, भावना और चिंतनशीलता के साथ एक अमिट छाप छोड़ी।
इस उत्सव की शुरुआत 23 दिसंबर को ‘असमंजस बाबू’ (सत्यजीत रे द्वारा लिखित और उत्पल झा द्वारा निर्देशित), ‘आखिरी हिला’ (मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित और दुर्गा शर्मा द्वारा निर्देशित), और ‘धुंध’ (अमूल सागर द्वारा लिखित और निर्देशित) के साथ हुई। दूसरे दिन, 24 दिसंबर को ‘इंतजार’ (सआदत हसन मंटो द्वारा लिखित और अमर साह द्वारा निर्देशित), ‘पुरुष’, और ‘द गॉड ऑफ फ्यू इंचेस’ (शुद्धो बनर्जी द्वारा लिखित और निर्देशित), तथा ‘किस्सा आदमी का’ (अब्दुस सलाम अंसारी द्वारा लिखित और निर्देशित) जैसे नाटकों ने दर्शकों के मन को मोह लिया।
इस उत्सव का उद्देश्य, भारतीय कहानी कहने की विविधता और गहराई को दर्शाने वाले उत्कृष्ट एकल तथा युगल नाटकों से सभी को पुनः परिचित कराना है।