इलाहाबाद, राजनीतिक गुलामी से ज्यादा घातक मानसिक गुलामी है। समाज में परिवर्तन लाने के लिए तीन नीतियां आवश्यक हैं। भाषा नीति, दाम नीति एवं दास नीति। भाषा के विकास के साथ-साथ आर्थिक समानता और सामाजिक समानता आवश्यक है तभी शोषण से मुक्ति मिल सकती है। उ
क्त बातें उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय में आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी डॉ. राम मनोहर लोहिया का दर्शन के समापन पर मुख्य अतिथि प्रख्यात समाजशास्त्री तथा जे.एन.यू के प्रो. आनन्द कुमार ने कही। उन्होंने आगे कहा कि भाषा एक सांस्कृतिक पूंजी है। भाषा समृद्धि होगी तो संस्कृति भी समृद्ध होगी। उन्होंने भोजपुरी एवं मैथिली भाषा की वकालत करते हुए कहा कि इन्हें भी संविधान की आंठवी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए। प्रो. कुमार ने कहा कि सरकारी काम-काज लोक भाषा में होने चाहिए न कि आंग्ल भाषा में। डॉ. लोहिया ने चित्रकूट में रामायण मेले की शुरुआत की, जो एक सांस्कृतिक मेला है जिसमें समाज के सभी जाति, पंथ एवं वर्ग के लोग आज भी सम्मिलित होते हैं।
उन्होनें कहा कि लोहिया जी का व्यक्तित्व करिश्माई था। डॉ. आलोक कुमार सिंह ने कहा कि डॉ. लोहिया सरकार बनाने वाले नहीं बल्कि समाज बनाने वाले योद्धा थे लेकिन आज के समय में लोग सरकार बनाने की तिकड़म करते हैं समाज बनाने का प्रयास नहीं। अध्यक्षता कुलपति प्रो. एम.पी.दुबे ने एवं अतिथियों का स्वागत निदेशक, विज्ञान विद्याशाखा डॉ. आशुतोष गुप्ता ने किया। विश्वविद्यालय के बारे में आयोजन सचिव डॉ. जी.के. द्विवेदी ने जानकारी दी। राष्ट्रीय सेमिनार की रिपोर्ट संयोजक डॉ. गोपीनाथ पिल्लई, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी का संचालन सह-आयोजन सचिव डॉ. श्रुति एवं धन्यवाद ज्ञापन सह-आयोजन सचिव डॉ. अतुल कुमार मिश्रा ने किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न भागों से 125 प्रतिभागियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किये।