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राधाष्टमी पर ब्रज के कोने कोने से सुनाई पड़ती है राधे राधे की प्रतिध्वनि

मथुरा,  राधा अष्टमी पर ब्रज का कोना कोना इतना अधिक राधामय हो जाता है कि यहां ’’डार डार अरू पात पात ’’ राधे राधे की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है।

इस बार राधा अष्टमी 11 सितंबर को मनाई जानी है। राधारानी चूंकि श्यामसुन्दर की आद्या शक्ति है इसलिए ब्रज में राधाष्टमी उतनी ही धूमधाम से मनाई जाती है जितनी धूमधाम से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इन दोनो पर्वों पर लाखों तीर्थयात्री ब्रज मंडल में आकर किशोरी जी का आशीर्वाद लेते है।

ब्रज के महान तपस्वी संत बाबा नागरीदास ने बताया कि पुराणों के अनुसार ब्रज मे त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो विराजमान हैं। बरसाना में ब्रह्मा और विष्णु पर्वत आमने सामने है। बाएं हांथ की पहाड़िया विष्णु स्वरूप हैं तो दाये हांथ की पहाड़ियां ब्रह्मास्वरूप में हैं। राधारानी की परिक्रमा करते समय सांकरीखोर पर दोनो को आमने समाने देखा जा सकता है।राधारानी की नगरी बरसाना का प्रमुख लाड़ली मन्दिर ब्रह्माचल पर्वत बना हुआ है।

परम तपस्वी संत ने बताया कि एक बार ब्रहमा जी ने श्री हरि की तपस्या की तो उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्री हरि ने उनसे वर मांगने को कहा। ब्रहमा जी ने उनसे कहा कि वे किशोरी जी और श्यामसुन्दर की रासलीला देखना चाहते है।इसलिए वर दें कि वे इस रासलीला को देख सकें। इस पर श्री हरि ने कहा कि उन्हें इस स्वरूप श्यामाश्याम की रासलीला देखने को नही मिलेगी। उन्होंने उनसे कहा कि वे बरसाना में ब्रहमगिरि पर्वत के रूप में निवास करें। द्वापर में वे जब कृष्णस्वरूप में व्रजमंडल आएंगे तो उन्हें इस लीला के दर्शन होंगे। इसके बाद ब्रहमा जी बरसाने में ब्रहमाचल पर्वत के रूप में रहने लगे । ब्रहमाचल पर्वत पर ही दान मन्दिर,हिण्डोला, मयूर कुटी,रासमण्डल है। ब्रहमाचल पर्वत पर ही राधामन्दिर, नृत्यमण्डल स्थली विलास मन्दिर और गहवर वन आदि स्थान हैं।

श्री राधा का जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण राधाष्टमी की रात पहले मूल शांति होती है जिसमें 27 कुओं का जल, 27 पेड़ों की पत्ती, 27 तरह के फल, 27 तरह के अनाज आदि का प्रयोग होता है तथा कार्यक्रम एक प्रकार से पूरी रात चलता है। रात ढ़ाई बजे से मान सवासिन, नाईन, दाई के पदों का गायन समाज गायन में होता है। इसके बाद सुबह चार बजे से पंचामृत , औषधियों से महा अभिषेक होता है। ये सभी कार्यक्रम इस बार 11 सितंबर को होंगे।

11 सितंबर को ही सुबह 9 बजे श्रीजी के स्वर्ण पालने में दर्शन होंगे। इसी दिन शाम साढ़े चार बजे राधारानी का डोला मंदिर से सफेद छतरी पर आएगा तथा बधाई एवं समाज गायन होगा। उसी समय महाकालेश्वर मन्दिर उज्जैन के संरक्षक शिवहरिदास महराज द्वारा हेलीकाप्टर से गुलाब के फूलों की वर्षा लाड़ली मन्दिर पर विशेषकर छतरी पर की जाएगी। शाम साढ़े 6 बजे श्री जी पुनः निज भवन में आएंगी और गोस्वामी समाज की कन्या द्वारा आरता किया जाएगा।

लाड़ली मन्दिर बरसाना के सेवायत आचार्य रास बिहारी ने बताया कि 12 सितंबर में बूढ़ी लीला शुरू हो जाएगी। इसी दिन सुबह मोर कुटी पर मयूर लीला और शाम को चार बजे मन्दिर में ढ़ाढ़ी ढाडिन लीला होगी। इसी क्रम में 13 सितंबर को झूला लीला, 14 को बरसाने की कुंजो में माखनचोरी लीला, दोपहर में सांकरी खोर में चोटी बंधन लीला व शाम गाजीपुर के प्रेम सरोवर में डोंगा लीला होगी। 15 सितंबर को ऊंचागांव में ललिता जू का ब्यावला होगा और शाम को प्रियाकुंड में नौका विहार लीला होगी।

16 सितंबंर को राधाजी का छठी उत्सव, दस बजे सांकरी खोर में दान लीला, तथा उसी स्थान पर मटकीफोड़ लीला यानी राधाजी की दही से भरी मटकी फोड़ी जाएगी। इसी श्रंखला में 17 सितंबर को नागा जी की साधनास्थली कदमखंडी में केश सुलझाने एवं चीर हरण लीला होगी तथा शाम को मड़ोई रास मडल पर रास होगा।यहां पर ठाकुर जी मुकुट धारण करेगे जिसके दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं।

उन्होंने बताया कि इससे पहले ललिताजू का जन्मदिन ऊंचागांव में मनाया जाएगा तथा 10 सितंबर को राधा जन्म की बधाई नंदगांव से आएगी तथा शाम नन्दगांव और बरसाना के गोस्वामियों द्वारा समाज गायन होगा। कुल मिलाकर राधा जन्म से बूढ़ी लीला तक बरसाना में भक्ति रस की गंगा प्रवाहित होती रहती है।