इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने एक आदेश में कहा है कि रेप के कारण जन्मे बच्चे का अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होता है। अगर बच्चा या बच्ची को कोई गोद ले लेता है तो फिर उसका जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार खत्म हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि वह बच्चा या बच्ची उस जैविक पिता की नाजायज संतान के तौर पर ही देखी जाएगी। एक रेप केस की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शाबिहुल हसनैन और न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने यह आदेष दिये। पीडि़त लड़की एक गरीब परिवार से है। इस साल के शुरुआत में उससे रेप किया गया, जिससे वह गर्भवती हो गई और हाल ही में उसने एक बच्ची को जन्म दिया है। उसके परिवार को काफी समय के बाद बेटी के गर्भवती होने का पता चला, तब तक कानूनी तौर पर गर्भपात कराने की समय सीमा (21 सप्ताह) खत्म हो चुकी थी। इस पर उसके परिवार ने गर्भपात कराने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए डॉक्टरों के पैनल ने इस स्थिति में गर्भपात कराने की सलाह नहीं दी। उन्होंने कहा कि इससे पीडि़ता की जान को खतरा है। इस पर पीडि़ता ने कहा था कि उसकी बेटी इस शर्म के साथ समाज में जीवित नहीं रह सकती है इसलिए बेहतर होगा कि वह बच्ची को जन्म दे और उसे कोई गोद ले ले।
हाईकोर्ट ने कहा कि नवजात बच्ची को गोद लेने के लिए दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर बच्ची को कोई गोद लेता है तो फिर उसका अपने जैविक पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाएगा। लेकिन कोई उस बच्ची को गोद नहीं लेता है तो बिना कोर्ट के निर्देश के ही उसका अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होगा।
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सरकार को गुजारा भत्ता के तौर पर 10 लाख रुपए 13 वर्षीय रेप पीडि़ता को देने का आदेश दिया। साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि जब वह बालिग हो जाए तो उसे नौकरी मिले।