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लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराना किफायत के लिहाज से फायदेमंद

हैदराबाद , पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने कहा है कि यदि चुनाव सुधारों पर तेजी से अमल किया जाए तो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के प्रस्ताव को सही ठहराने की कोई वजह नहीं हो सकती। कृष्णमूर्ति ने कहा कि यदि हमारी राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान अच्छा बर्ताव करें , आदर्श आचार संहिता का सख्ती से पालन करें , खर्च की सीमा मान लें और हिंसा , नफरत एवं बाहुबल से परहेज करें तो एक साथ चुनाव के विचार को सही ठहराने की कोई वजह नहीं है।

उन्होंने  चूंकि वे इन चीजों का पालन नहीं करते और चुनाव के दौरान कानून के शासन का सम्मान नहीं करते , ऐसे में किफायत के लिहाज से देखें तो एक साथ चुनाव कराना निश्चित तौर पर फायदेमंद होगा। कृष्णमूर्ति ने कहा , ‘‘ एक साथ चुनाव कराने के विचार पर तभी अमल किया जा सकता है जब संविधान में संशोधन हो और पर्याप्त संख्सा में अर्धसैनिक बल उपलब्ध हों। उन्होंने प्रमुख चुनाव सुधारों के तौर पर राजनीतिक पार्टियों के नियमन संबंधी कानून , राष्ट्रीय चुनाव कोष के जरिए चुनावों की सार्वजनिक फंडिंग , ‘ फर्स्ट पास्ट दि पोस्ट ’ प्रणाली में बदलाव और आपराधिक तत्वों के चुनाव लड़ने पर रोक जैसे उपाय गिनाए।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा , ‘‘ यदि यह चार  किए गए तो एक साथ चुनावों को सही नहीं ठहराया जा सकता। यह पूछे जाने पर कि राजनीतिक पार्टियों का नियमन कैसे किया जाए , इस पर उन्होंने कुछ देशों के कानूनों का हवाला दिया जो राजनीतिक पार्टियों के गठन , कामकाज , घोषणा – पत्र और वित्तीय प्रक्रियाओं से जुड़े हैं।  केंद्र सरकार के ‘‘ एक देश , एक चुनाव ’’ के विचार को आकार देने के मकसद से विधि आयोग ने अपने आंतरिक कार्य पत्र में लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की है जिसकी शुरुआत 2019 से प्रस्तावित है। बीते सात और आठ जुलाई को आयोग ने इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से विचार – विमर्श किया था। कुल छह पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया जबकि नौ पार्टियों ने इसका विरोध किया।