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लोकसभा-विधानसभा साथ कराने पर जोर, चुनाव प्रबंधक की जरूरत नही-बीजेपी

Arun-Jaitley-PTIनई दिल्ली,  वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने से प्रचार की लागत कम होगी और शासन की गुणवत्ता में सुधार होगा। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने की प्रधानमंत्री की राय से सुर में सुर मिलाते हुए जेटली ने कहा कि भारत में फिलहाल कोई न कोई चुनाव हर साल होते हैं, जो केंद्र और राज्यों की सरकारों की काफी ऊर्जा ले लेता है।

बुधवार को कैंपेन फाइनांस रिफॉर्म इन इंडिया विषय पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा, यह (एक साथ चुनाव) खर्च को काफी हद तक कम कर देगा क्योंकि अगर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए तो प्रचार साझा हो जाएगा और साझा प्रचार में खर्च होने वाला धन काफी कम हो जाएगा। इसमें दोहराव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराए जाने से शासन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान शासन ठहर जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में कोई न कोई चुनाव हर साल होते हैं और इसलिए केंद्र और राज्यों की सरकारों, राजनैतिक दलों या संसद की उर्जा दूसरी तरफ लग जाती है। आचार संहिता लागू हो जाने से शासन ठहर जाता है और सदन में चर्चा की गुणवत्ता शासन केंद्रित होने की बजाय चुनाव केंद्रित अधिक हो जाती है।

उन्होंने कहा कि पांच साल के कार्यकाल के लिए निर्वाचित कोई भी सरकार अपनी ऊर्जा, समय और संसाधनों का बड़ा हिस्सा चुनावी चर्चा पर खर्च करती है। जेटली ने कहा, इसलिए प्रभाव न सिर्फ खर्च पर बल्कि शासन पर भी होता है। इसलिए प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि प्रयास करते हैं और एक साथ चुनाव कराने के लिए कानून में संशोधन करते हैं। स्पष्टतः इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी और इसके लिए व्यापक आम सहमति की आवश्यकता होगी। चुनाव प्रबंधक की अवधारणा पर उन्होंने कहा कि उनकी राय में कई नेता इस विचार को बिल्कुल अप्रिय मानेंगे। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि चुनाव प्रबंधकों की अवधारणा नयी है। और मुझे उम्मीद है कि मैं जो कहूंगा, आप उसके पीछे का स्पष्ट संदेश प्राप्त करेंगे। अगर कोई पार्टी अपनी विकास ढांचा की वजह से स्वाभाविक नेता तैयार करने में विफल रहती है जो उसका नेतृत्व करे और प्रचार अभियान का प्रबंधन करे तो उसे उनकी बाहर से सेवा लेनी पड़ेगी। उन्होंने कहा, अन्यथा, किसी भी आत्मसम्मान रखने वाले नेता, जिसने सार्वजनिक जीवन में तीन-चार दशक बिता लिए हैं, उससे यह कहा जाए कि अब आप आला प्रबंधक को जाकर रिपोर्ट करेंगे, क्योंकि उसके पास हमसे अधिक दिमाग है तो मेरा मानना है कि यह एक ऐसा विचार है जिसे राजनैतिक दलों में अनेक लोग पूरी तरह अप्रिय मानेंगे।

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