नई दिल्ली, भारत की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी खासियत सामानों के अदला-बदली की रही है। आजादी से पहले गांवों और छोटे कस्बे में लोग अपनी जरूरतों को सामान के बदले सामान देकर पूरी करते थे। लेकिन अर्थव्यवस्था की आधुनिकता ने उस व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया।
आठ नवंबर 2016 के एक फैसले के बाद एक बार फिर वही नजारा देश के कुछ हिस्सों में देखने को मिल रहा है, जब जरूरतों को पूरी करने के लिए लोग सामानों की अदला-बदली कर रहे हैं। झारखंड के गावों में आपसी समझदारी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सरपट दौड़ रही है। गांव में दुकानदार लोगों को आसानी से सामान दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनका पैसा सुरक्षित है। यहां पर लोग समझदारी से काम लेते हुए एक दूसरे चीजें बदल रहे हैं। तो वहीं कई जगहों पर लोग अपनी सब्जियां और अनाज दुकानदार को दे रहे हैं और उसके बदले में जरूरत का सामान ले रहे हैं। तो वहीं ओडिशा के गांवों में भी यही समझदारी दिखी जहां पर एक सब्जीवाले ने मछली वाले से कुछ किलो सब्जी देकर मछली खरीदी। यहां लोग आपसी लेन-देन से ही काम चला रहे हैं। इसके साथ ही कई गांवों में पहले खरीद लो बाद में भुगतान कर देने वाले पद्धति पर काम हो रहा है। तो इस तरह से समझा जा सकता है कि आज के इस दौर में एक बार फिर से पूर्व काल लौटकर आ गया है। गांव में लोग अपनी समस्या बड़ी ही आसानी से दूर कर रहे हैं। अगर इसी तरह की व्यवस्था शहरों में भी हो जाए तो शायद इस मुश्किल परिस्थिति से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है। क्योंकि इंसानियत का काम ही है एक दूसरे की मदद करना।