वंदे मातरम के 150वें साल को ऐतिहासिक बनाने में हर नागरिक दे योगदान : प्रधानमंत्री मोदी

नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि देश 7 नवंबर को नागरिकों में राष्ट्र भक्ति का संचार करने वाले वंदे मातरम गीत की रचना के 150वें साल में प्रवेश कर रहा है और इसे ऐतिहासिक अवसर बनाने में देशवासियों को एकजुट होकर अपना योगदान देने की ज़रूरत है।

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 127वीं कड़ी में कहा कि 150 साल पहले जब बंकिमचंद्र चटर्जी ने वंदेमातरम गीत की रचना की थी तो इसने देशवासियों में ऊर्जा का ऐसा संचार कर दिया था कि यह अमूर्त भावना को साकार स्वर देने वाला गीत बनकर राष्ट्र प्रेम का सतत प्रेरणा स्रोत बन गया है। इसने देशवासियों के हृदय में देश भक्ति की भावनाओं का उफान लाकर खड़ा कर दिया था।

प्रधानमंत्री ने कहा “अब ‘मन की बात’ में एक ऐसे विषय की बात, जो हम सबके दिलों के बेहद करीब है। ये विषय है हमारे राष्ट्र गीत का-भारत का राष्ट्र गीत यानी ‘वन्दे मातरम्’। एक ऐसा गीत, जिसका पहला शब्द ही हमारे हृदय में भावनाओं का उफान ला देता है। ‘वन्देमातरम्’ इस एक शब्द में कितने ही भाव हैं, कितनी ऊर्जाएं हैं। सहज भाव में ये हमें माँ-भारती के वात्सल्य का अनुभव कराता है। यही हमें माँ-भारती की संतानों के रूप में अपने दायित्वों का बोध कराता है। अगर कठिनाई का समय होता है तो ‘वन्देमातरम्’ का उद्घोष 140 करोड़ भारतीयों को एकता की ऊर्जा से भर देता है।”

उन्होंने कहा कि राष्ट्रभक्ति, माँ-भारती से प्रेम, यह अगर शब्दों से परे की भावना है तो ‘वन्दे मातरम्’ उस अमूर्त भावना को साकार स्वर देने वाला गीत है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी ने सदियों की गुलामी से शिथिल हो चुके भारत में नए प्राण फूंकने के लिए की थी। ‘वन्दे मातरम्’ भले ही 19वीं शताब्दी में लिखा गया था लेकिन इसकी भावना भारत की हजारों वर्ष पुरानी अमर चेतना से जुड़ी थी। वेदों ने जिस भाव को ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’कहकर भारतीय सभ्यता की नींव रखी थी। बंकिमचंद्र जी ने ‘वन्दे मातरम्’ लिखकर मातृभूमि और उसकी संतानों के उसी रिश्ते को भाव विश्व में एक मंत्र के रूप में बांध दिया था।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा “आप सोच रहे होंगे कि मैं अचानक से वन्दे मातरम् की इतनी बातें क्यों कर रहा हूं। दरअसल कुछ ही दिनों बाद, 7 नवंबर को हम ‘वन्दे मातरम्’ के 150वें वर्ष के उत्सव में प्रवेश करने वाले हैं। 150 वर्ष पूर्व ‘वन्दे मातरम्’ की रचना हुई थी और 1896 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार इसे गाया था। ‘वन्दे मातरम्’ के गान में करोड़ों देशवासियों ने हमेशा राष्ट्र प्रेम के अपार उफान को महसूस किया है। हमारी पीढ़ियों ने ‘वन्दे मातरम्’ के शब्दों में भारत के एक जीवंत और भव्य स्वरूप के दर्शन किए हैं। सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शस्यश्यामलाम्, मातरम्! वंदे मातरम्! ”

उन्होंने कहा “हमें ऐसा ही भारत बनाना है। ‘वन्दे मातरम्’ हमारे इन प्रयासों में हमेशा हमारी प्रेरणा बनेगा। इसलिए, हमें ‘वन्देमातरम्’ के 150वें वर्ष को भी यादगार बनाना है। आने वाली पीढ़ी के लिए इस संस्कार सरिता को हमें आगे बढ़ाना है। आने वाले समय में ‘वन्दे मातरम्’ से जुड़े कई कार्यक्रम होंगे, देश में कई आयोजन होंगे। मैं चाहूँगा, हम सब देशवासी ‘वन्दे मातरम्’ के गौरवगान के लिए स्वत: स्फूर्त भावना से भी प्रयास करें| आप मुझे अपने सुझाव वन्दे मातरम 150 के साथ जरूर भेजिए। मुझे आपके सुझावों का इंतजार रहेगा और हम सब इस अवसर को ऐतिहासिक बनाने के लिए काम करेंगे।”

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