वक्फ़ कानून जन अधिकारों पर हमला: कांग्रेस

नयी दिल्ली, कांग्रेस ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक को नागरिकों के अधिकार पर हमला बताते हुए इसे सुधारों की आड़ में प्रतिशोध करार दिया और कहा कि यह पहचान, स्वायत्तता और संवैधानिक मूल्यों पर हमला है।

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने गुरुवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि धार्मिक मामलों में सत्ता की दखलंदाजी को सुशासन कहकर पेश किया जा रहा है। यह धार्मिक संस्थाओं पर चोट करने के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय की आत्मनिर्णय तथा स्वायत्तता की भावना को कुचलता है।

उन्होंने कहा, “मैं कहना चाहता हूँ कि यह सुधार नहीं है, बल्कि सुधार की आड़ में प्रतिशोध है। प्रतिशोध की पटकथा बहुत ही सावधानी से लिखी गई है, रणनीतिक रूप से समयबद्ध है और संवैधानिक रूप से संदिग्ध है। वक्फ संशोधन अधिनियम दक्षता का अभ्यास नहीं है, जैसा कि इसे होने का दिखावा किया गया है। यह मिटाने का अभ्यास है। शासन की नीरस भाषा के पीछे नियंत्रण की साहसिक महत्वाकांक्षा छिपी है। धार्मिक स्वायत्तता को राज्य द्वारा प्रशासित प्रोटोकॉल में बदला जा रहा है और सामुदायिक अधिकारों को नौकरशाही कलम से फिर से परिभाषित किया जा रहा है।”

उन्होंने कहा, “यह संस्थानों को बेहतर बनाने के बारे में नहीं है बल्कि उन्हें घुसपैठ करने, नियंत्रित करने और बंद करने के बारे में है। सरकार जिसे सुधार बता रही है, दरअसल वह अधिकारों पर प्रहार है। वक्फ़ अधिनियम प्रशासनिक कदम नहीं है, यह एक मूल वैचारिक हमला है। इसे पढ़िए और समझिए। कानून सुधार की भाषा में यह अधिनियम पूरी तरह से 100 प्रतिशत नियंत्रण की नीति लाने का प्रयास करता है। यह न सिर्फ़ धार्मिक संस्थाओं पर चोट करता है, बल्कि अल्पसंख्यकों के आत्म निर्णय, स्वायत्तता की भावना को कुचलता है। ये सत्ता की दखलंदाजी को सुशासन कहकर पेश करता है।

लेकिन कांग्रेस पार्टी चुप नहीं रहेगी, वह सड़क से लेकर संसद तक इस अधिनियम का विरोध करेगी।”

श्री सिंघवी ने कहा, “वक्फ़ अधिनियम एक लक्षित अतिक्रमण है। यह अधिनियम प्रशासनिक कार्यकुशलता के नाम पर स्थापित न्यायिक सिद्धांतों को कुचलता है। हमारे मानवाधिकार के पार्ट-3 में दो अनुच्छेद बेहद जरूरी हैं। इनमें 25, 26 विशेष हैं। इसमें 26 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर व्यक्ति को पूरा अधिकार है कि वह अपने धर्म का अभ्यास, निर्वहन और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है। वह धर्म से जुड़ी संस्थाओं को चलाने, उनका प्रबंधन देखने और उनके चुनावों में नामित हो सकता है। कोई ये नहीं कह रहा कि इन अधिकारों की कोई सीमा नहीं है। इसी के तहत संविधान में इसकी सीमा भी लिखी गई है और वे सीमाएं-पब्लिक ऑर्डर, सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता हैं। आप देखेंगे तो इनका वक्फ़ अधिनियम से कोई संबंध नहीं है। इसमें कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो सार्वजनिक क़ानूनी व्यवस्था को बचाने के लिए किया गया हो, स्वास्थ्य और सार्वजनिक नैतिकता के लिए किया गया हो। पचास-साठ के दशक में पांच खंडपीठ का एक निर्णय आया, जिसमें कहा गया है कि किसी रूप में किसी ऐसे वर्ग की संस्थाओं की स्वायत्तताओं को हटाएंगे, उनके ऊपर नियंत्रण इतना करेंगे कि उनकी स्वायत्तता ख़त्म हो जाए- तो वह असंवैधानिक है।”

उन्होंने कहा, “राजनीतिक स्तर पर, आप अनुच्छेद 26 को समाप्त करके इसे प्रशासनिक दक्षता नहीं कह सकते। आप इसे संशोधन अधिनियम नहीं कह सकते, जहाँ यह वास्तव में पहचान, स्वायत्तता और संवैधानिक मूल्यों पर हमला है। एक बोर्ड जिसमें मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व हो, वह विनियोग का दूसरा रूप है। यह मुस्लिम कहे जाने वाले अल्पसंख्यकों के बारे में नहीं है -यह एक संदेश के बारे में है कि अल्पसंख्यक संस्थान राज्य के अधिग्रहण के लिए उचित खेल हैं। राजनीतिक स्तर पर, आप अनुच्छेद 26 को समाप्त करके इसे प्रशासनिक दक्षता नहीं कह सकते। आप इसे संशोधन अधिनियम नहीं कह सकते, जहाँ यह वास्तव में पहचान, स्वायत्तता और संवैधानिक मूल्यों पर हमला है। एक बोर्ड जिसमें मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व हो, वह विनियोग का दूसरा रूप है। यह मुस्लिम कहे जाने वाले अल्पसंख्यकों के बारे में नहीं है – यह एक संदेश के बारे में है कि अल्पसंख्यक संस्थान राज्य के अधिग्रहण के लिए उचित खेल हैं।”

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