दरभंगा, वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक डॉ. जितेंद्र नारायण ने आज कहा कि चुनावी वादे राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं लेकिन उनका इस्तेमाल केवल प्रलोभन के लिए नहीं होना चाहिए। डॉ. नारायण ने आज यहां जाने माने पत्रकार स्वण् राम गोविन्द प्रसाद गुप्ता की 23वीं पुण्यतिथि पर स्थानीय दोनार चैक पर ष्चुनावी वादों का प्रलोभन और पत्रकारों की भूमिकाष् विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते कहा कि चुनावी वादे राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और इसके बिना जनता.जर्नादन के बीच जाना राजनीतिक दलों के लिए संभव नहीं है। लेकिनए वादों का इस्तेमाल प्रलोभन की तरह नहीं होना चाहिए क्योंकि विचारों.वादों में परिवर्तन की कवायद देश की परंपरा नहीं रही है।
राजनीतिक चिंतक ने कहा कि राजनीतिक दल ऐसे प्रलोभन युक्त वादा भी करते हैंए जिसे संवैधानिक संस्थायें स्वीकार नहीं करती है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि एक तरफ जनमत निर्माण के क्षेत्र में प्रेस की भूमिका निर्विवाद रूप से स्वीकार की जाती है। चुनावी वादा और प्रलोभन दोनों अलग.अलग चीजें हैं वादा इस बात का अहसास कराना होता है कि सत्ता में आने के बाद उसे पूरा करेंगेए जो एक तरह से वचन पत्र होता है। वहींए प्रलोभन का जहां तक सवाल है वैसे तरह का वादा होता है जो किसी एक वर्ग या एक समुदाय को नाजायज ढंग से अपने पक्ष में करने की कवायद होती है।
डॉ. नारायण ने कहा कि प्रलोभन का नकारात्मक प्रभाव प्रजातंत्र की पूरी पद्धति पर पड़ता है क्योंकि यह संविधान और संविधान के स्थापित मूल्यों के विपरीत जाकर किया गया वादा होता है। प्रलोभन युक्त वादों से समाज में विवेद भी पैदा होगा और उसका राजनीतिक लाभ उसे मिलेगा। दोनों ही परिस्थितियों में दलों को राजनीतिक हितों के संरक्षण एवं संवर्धन में मदद मिलती है जबकि उसका नकारात्मक प्रभाव पूरी राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में पत्रकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण बनती है क्योंकि एक तरफ तो जनमत निर्माण के क्षेत्र में प्रेस की भूमिका निर्विवाद रूप से स्वीकार की जाती है।