नई दिल्ली, बिजनेसमैन विजय माल्या पर शिकंजा कसने के लिए जांच एजेंसियों ने तैयारियां तेज कर दी हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई का चार सदस्ययी दल प्रत्यर्पण की कोशिशें तेज करने के लिए आज (2 मई) लंदन पहुंच गया है।
विजय माल्या पर भारतीय बैंकों का 9000 करोड़ रुपये का लोन बकाया है। दोनों ही एजेंसियां अलग-अलग मामलों में विजय माल्या की जांच कर रही हैं।18 अप्रैल को स्कॉटलैंड यार्ड ने विजय माल्या को तीन घंटे तक गिरफ्तार करके रखा था।
इस दौरान उनसे पूछताछ की गई और फिर छोड़ दिया गया। फिलहाल वह अपने लंदन वाले घर में हैं। 61 साल के शराब कारोबारी विजय माल्या को वेस्टमिंस्टर कोर्ट के आदेश के बाद गिरफ्तार किया गया था। जमानत मिलने के बाद विजय माल्या ने ट्वीट में लिखा था. मीडिया ने मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, प्रत्यर्पण केस की सुनवाई आज से सुनवाई शुरू हो गई। इसलिए भगोड़ा बनने पर हुए मजबूर विजय माल्या का नाम देश के बड़े बिजनेसमैनों में गिना जाता था।
अब विजय माल्या पर बैंको का 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। कर्ज उगाही के लिए हाल ही में उनके एक बंगले की बिक्री भी हुई है। कर्ज न चुका पाने के लिए माल्या ने कहा था कि तेल के रेट बढ़ने ज्यादा टैक्स और खराब इंजन के चलते उनकी किंगफिशर एयरलाइन्स को 6,107 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा था। प्रीमियम सेवाओं के लिए जानी जाने वाली किंगफिशर एयरलाइंस की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी। इसके मालिक विजय माल्या थे।
2005 में इसका कमर्शियल ऑपरेशन शुरू हुआ। उस दौर में प्रीमियम सेवाओं में इसका कोई तोड़ नहीं था। हालांकि, कंपनी को इसके लिए भारी रकम खर्च करनी पड़ रही थी, जिससे उसे कॉस्ट निकालना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में कंपनी ने देश की एक लो कॉस्ट एविएशन कंपनी खरीदने की कोशिशें शुरू कर दीं। यह कोशिश 2007 में जाकर कामयाब हुई लेकिन इस तरह उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की ओर कदम बढ़ा दिया था।
माल्या ने 2007 में करीब 1200 करोड़ रुपये में एयर डेक्कन को खरीदा। माल्या भले ही एयर डेक्कन को खरीदने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी इसके माध्यम से किंगफिशर को मजबूती देने की रणनीति बुरी तरह फेल हो गई। बाद में माल्या ने दोनों एयरलाइंस का विलय कर दिया और फिर एयर डेक्कन का नाम बदलकर किंगफिशर रेड हो गया जो प्रीमियम सेवाओं के साथ ही कम कीमत में भी सेवाएं देने लगी।
एयर डेक्कन के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ ने एक मीडिया रिपोर्ट में कहा था कि एक ब्रांड की दोनों सेवाओं में ज्यादा अंतर भी नहीं था, और कीमत काफी कम थी। बस तभी से समस्याएं पैदा होने लगीं। गोपीनाथ के मुताबिक इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से किंगफिशर की दोनों सेवाओं के बीच अपने मौजूदा ग्राहकों को छीनने के लिए होड़ होने लगी। इससे किंगफिशर पर दोहरी मार पड़ी।
पहली किंगफिशर के इकोनॉमी पैसेंजर्स ने किंगफिशर रेड की ओर रुख करना शुरू कर दिया, जहां सुविधाएं काफी हद तक एक जैसी थीं। लेकिन जब माल्या ने किंगफिशर रेड के किराये को बढ़ाने का फैसला किया तो कस्टमर इंडिगो या स्पाइसजेट जैसी कम कीमत वाली एयरलाइंस की ओर रुख करने लगे।
विलय के बाद माल्या को उम्मीद थी कि एयर डेक्कन के कस्टमर किंगफिशर की ओर रुख करेंगे, लेकिन इसका उलटा होने लगा। आखिर में एयर डेक्कन (किंगफिशर रेड) के कस्टमर दूसरी कम कीमत वाली एयरलाइंस की ओर रुख करने लगे।