नैनीताल, उत्तराखंड विधानसभा से हटाये गये तदर्थ कार्मिकों को गुरुवार को उच्च न्यायालय से पुनः झटका लगा। न्यायालय ने एकलपीठ के अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ में हुई। विधानसभा से हटाये गये लगभग 100 से अधिक तदर्थ कार्मिकों की ओर से एकलपीठ के आदेश के एक हिस्से को पृथक-पृथक याचिका दायर कर चुनौती देते हुए कहा गया कि एकलपीठ ने पिछले साल 15 अक्टूबर, 2022 को अंतरिम आदेश जारी कर विधानसभा सचिवालय को नियमित नियुक्ति करने की छूट प्रदान कर दी थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि विधानसभा नियमावली में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि छह माह से अधिक सेवा करने वाले कार्मिक नियमितीकरण के हकदार हैं। ऐसे में एकलपीठ का नियमित नियुक्ति संबंधी आदेश गलत है। उन्हें तदर्थ सेवा के रूप में छह साल से अधिक हो गये हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं के तर्क को नहीं माना और याचिका को खारिज करने के निर्देश दे दिये।
गौरतलब है कि विधानसभा सचिवालय ने पिछले साल अक्टूबर में तीन सदस्यीय कमेटी की सिफारिश के बाद 2016 से 2021 तक के मध्य तदर्थ रूप से नियुक्त 228 कार्मिकों को अवैध मानते हुए बर्खास्त कर दिया था।
इसके बाद इन कर्मचारियों ने विधानसभा सचिवालय के आदेश को एकलपीठ में चुनौती दी थी। एकलपीठ ने अंतरिम आदेश जारी कर हटाये गये कार्मिकों को तदर्थ रूप में बहाल करने, विधानसभा सचिवालय को नियमित नियुक्ति करने और हटाये गये कार्मिकों को नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल करने के निर्देश दिये थे।
साथ ही अदालत ने हटाये गये कार्मिकों को नियुक्ति प्रक्रिया में किसी प्रकार की अड़चन या बाधा उत्पन्न नहीं करने के भी निर्देश दिये थे।
उल्लेखनीय है कि हटाये गये कार्मिकों को युगलपीठ से आज दूसरी बार झटका लगा है। इससे पहले विधानसभा सचिवालय की ओर से एकलपीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील को मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने स्वीकार करते हुए बहाली संबंधी अंतरिम आदेश को पिछले साल नंवबर में खारिज कर दिया था।